पक्षियों का विलुप्त होना पर्यावरण के संतुलन के लिए एक गंभीर संकट है। ये नन्हे पंखों वाले जीव न केवल प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी बनाए रखते हैं। जंगलों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और शिकार के कारण परिंदों की कई प्रजातियां लुप्तप्राय: हो चुकी हैं।

घरेलू चिडिय़ा गौरैया भी ऐसे पक्षियों मेंं शामिल है, जो हमारी आंखों से ओझल होते जा रहे हैं। गोरैया की संख्या में गिरावट अचानक नहीं आई, बल्कि यह आधुनिक जीवनशैली और पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम है।

पहले लोग मिट्टी और लकड़ी के बने घरों में रहते थे, जहां गोरैया को घोंसले बनाने के लिए पर्याप्त जगह मिलती थी पर कंकरीट के आधुनिक घरों में गोरैया के घोंसला बनाने की गुंजाइश नहीं बची है।

आम लोग गोरैया के संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं। मगर फिर भी भारत समेत दुनिया भर में इस चिडिय़ा की तादाद घटती जा रही है। गोरैया को बचाना बहुत जरूरी है क्यों कि यह केवल एक छोटी सी चिडिय़ा नहीं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है।


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