बिहार में जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज का असर मॉनसून पर पड़ रहा है। इस वजह से राज्य में बारिश की अवधि कम हो गई है। पहले के मुकाबले अब बादल 15 दिन कम बरस रहे हैं।
साथ ही तापमान में बढ़ोतरी होने से गर्मी का सितम भी बढ़ रहा है। सूबे में किसी जगह पर बहुत कम बारिश होने और किसी जगह पर बहुत ज्यादा पानी गिरने की वजह भी जलवायु परिवर्तन ही है।
इस मॉनसून सीजन बारिश की किल्लत और बरसात के दिनों में कमी क्लाइमेट चेंज का प्रमुख उदाहरण है। एक-दो अवसरों को छोड़ दें तो बीते 5-7 सालों में औसतन बारिश के 15 दिन घट गए हैं। साथ ही इस अवधि में अतिवृष्टि, सूखा और बरसात के असमान वितरण जैसी परिस्थितियां भी देखने को मिल रही हैं।
सर्दियों में औसतन तापमान में 0.5 से एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी हुई है। इस क्षेत्र में हुए अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं। बिहार में मौसम में हो रहे लगातार बदलाव को लेकर मौसम वैज्ञानिक अलग-अलग अध्ययन कर रहे हैं। इसमें बारिश, हवा, तापमान और सूखे के आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है। ताकि जलवायु परिवर्तन के हिसाब से किसानों खेती के लिए क्षेत्रवार सुझाव दिए जा सकें।
बिहार में इस साल अब तक कहीं औसत से ज्यादा बारिश हुई, तो कहीं बहुत कम पानी गिरा। केंद्रीय राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक के मुताबिक सूबे में पहले हर साल 55 से 60 दिन बारिश होती थी। मगर बीते 5-7 सालों में यह आंकड़ा घटकर 45 दिन ही रह गया है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि प्रदेश में मॉनसूनी रेखा बनने के बाद भी बारिश के लिए अनुकूल कम दबाव का क्षेत्र नहीं बन रहा है या बन भी रहा है तो बहुत कमजोर स्थिति में है।
मौसम विभाग की मानें तो सूबे में पिछले कुछ सालों में क्लाइमेट चेंज की वजह से बारिश के असमान वितरण की प्रकृति स्थापित हुई है। जून में केवल 28 और 29 ताकरीख को ही राज्य के अधिकांश हिस्सों में मॉनसून की सक्रियता दिखी।
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