बिहार में प्रदूषण फैलाने वाले अस्पतालों में 78 फीसदी सरकारी है। निजी अस्पतालों के संचालन में लाप’रवाही की बात सामने आती रहती है लेकिन सरकारी अस्पताल उनसे चार कदम आगे हैं।
राज्य में बिना बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की मंजूरी (प्राधिकार) के 15 हजार 27 अस्पतालों का संचालन हो रहा है। इनमें 11 हजार 711 सरकारी अस्पताल हैं। बिना मंजूरी चलने वाले सरकारी अस्पतालों में अधिकतर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एपीएचसी) व स्वास्थ्य उपकेंद्र (हेल्थ सब सेंटर) हैं। यहां प्रदूषण नियंत्रण को लेकर बनाए गए नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है।
एनजीटी के आदेश का हो रहा उल्लंघन
गौरतलब है कि राज्य में निजी या सरकारी अस्पतालों के संचालन के लिए बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पार्षद से मंजूरी जरूरी है। जीव-चिकित्सा अपशिष्ट का निपटारा एवं सामूहिक जीव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधाओं की निगरानी के लिए स्वास्थ्य विभाग के सचिव के. सेंथिल कुमार अध्यक्षता में गठित राज्य स्तरीय समिति की दूसरी बैठक में इस पर गंभीर आपत्ति जतायी गयी है। समिति के अनुसार बिना प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की मंजूरी के सरकारी एवं गैर सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों का संचालन करना एनजीटी के आदेश का उल्लंघन है।
राज्य स्वास्थ्य समिति को जल्द संबद्धता लेने को कहा
राज्य स्तरीय समिति ने राज्य स्वास्थ्य समिति को सभी 11 हजर 711 सरकारी अस्पतालों का संबंधित क्षेत्र के सामूहिक जीव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार केंद्र से संबंद्धता (टाइअप) करने का निर्देश दिया है। साथ ही बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद से जल्द से जल्द अस्पतालों के संचालन के लिए मंजूरी लेने का निर्देश दिया है।
26 हजार 478 अस्पतालों में 6608 में बेड की सुविधा
पर्षद द्वारा चिन्हित राज्य में कुल 26 हजार 478 अस्पतालों में 6608 में बेड की सुविधा उपलब्ध है। इनमें कुल 1 लाख 4 हजार 391 बेड हैं। इस कारण अस्पताल से अधिक मात्रा में जीव-चिकित्सा अपशिष्ट निकलते हैं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए निर्धारित शर्तों का पालन नहीं करने से आसपास का वातावरण प्रदूषित होता है। आमलोगों के जीवन, खेती आदि पर भी उसका गंभीर असर होता है।
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