भारत सरकार ने भले ही 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया हो. भले ही चीनी कंपनियों की हाई–वे प्रोजेक्ट्स में एंट्री पर रोक लगाईगई है.
लेकिन 5जी नेटवर्क को तकनीक मुहैया कराने वाली चीनी आईटी कंपनी ख़्वावे भारत की महत्वकांक्षी 5जी परियोजना में एक प्रमुखदावेदार है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को मंत्रियों की एक बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि ख़्वावे को अब 5जीस्पेक्ट्रम के ट्रायल की इजाज़त दी जाए या नहीं.
हालांकि दिसंबर में केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि 5जी के ट्रायल का फ़ैसला किया गया है. 5जी भविष्य है. नईखोजों को प्रोत्साहित किया जाएगा. 5जी के ट्रायल में सभी ऑपरेटर्स भाग ले सकते हैं.
जिन ऑपरेटरों के भाग लेने की बात हुई थी, उनमें ख़्वावे भी शामिल था. अब अगर भारत अपने इस फ़ैसले से मुकरता है, तो इसेनिश्चित तौर पर भारत और चीन के बीच पैदा हुए तनाव के परिणाम के तौर पर देखा जाएगा
दूसरी ओर अमरीका ने इस कंपनी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया है. इसके अलावा एक अन्य कंपनी जेडटीई को भी ख़्वावेके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माना गया है.
अमरीका के फ़ेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन (एफसीसी) ने 30 जून को ख़्वावे टेक्नॉलॉजिज कंपनी और जेडटीई कॉरपोरेशन कोराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए बयान जारी किया है. बयान के मुताबिक़ अमरीकी कम्युनिकेशन नेटवर्क को सुरक्षा संबंधीजोखिमों से बचाने के लिए यह क़दम उठाया गया है. इस क़दम के बाद अब अमरीकी दूरसंचार कंपनियाँ एफ़सीसी के 8.3 बिलियनडॉलर फंड का इस्तेमाल इन चीनी कंपनियों से ख़रीदारी करने में नहीं कर पाएँगी.
अभी हाल में ही अमरीकी रक्षा मंत्रालय ने यह दावा किया था कि ख़्वावे समेत 20 चीनी कंपनियाँ या तो चीनी फ़ौज समर्थित हैं याफिर उनका नियंत्रण चीनी फ़ौज के हाथ में है. हालाँकि ख़्वावे ने इन आरोपों को निराधार बताया था.
कंपनी के हालिया आँकड़ों के मुताबिक़ अब तक दुनिया भर के 91 देशों में ख़्वावे को 5जी का कॉन्ट्रैक्ट मिल चुका है और हाल ही मेंकंपनी को ब्रिटेन में एक बिलियन पाउंड की लागत से बनने वाले एक रिसर्च सेंटर को शुरू करने की अनुमति मिली है.
हालाँकि सिंगापुर में ख़्वावे 5जी की दौड़ से हाल ही में बाहर हुआ है और वहाँ नोकिया और एरिक्सन को नीलामी के बाद इस सेवा केलिए चुना गया है. ऑस्ट्रेलिया ने पहले से ही ख़्वावे पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.
अमरीका और चीन के बीच लंबे समय से व्यापारिक गतिरोध बना हुआ है, जो कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने के साथ ही औरबदतर स्थिति में पहुँच चुका है. अमरीका के इस फ़ैसले से दोनों देशों के बीच पैदा हुई तल्ख़ी में एक नई कड़ी जुड़ गई है.
भारत के सामने क्या है विकल्प
फ़िलहाल भारत में 5जी की नीलामी इस साल के आख़िरी तक होने की उम्मीद है. 5जी नेटवर्क आबंटन में ख़्वावे के अलावा नोकिया, एरिक्सन और सैमसंग जैसी कंपनियाँ भी दावेदार हैं. हालाँकि ये भी बात सामने आ रही थी कि ख़्वावे एयरटेल और वोडाफोन केसाथ मिलकर भारत में 5जी का ट्रायल कर सकती है.
लेकिन समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ भारती एयरटेल के मैनेजिंग डायरेक्टर और दक्षिण एशिया के सीईओ गोपाल विट्ठलने कुछ महीने पहले कहा है कि अगर ट्राई 5जी की नीलामी की बेस प्राइस 492 करोड़ प्रति मेगाहर्ट्ज रखता है तो उनकी कंपनी इसनीलामी में हिस्सा नहीं लेगी.
इसके अलावा वोडाफोन, जियो और आइडिया के भी इस नीलामी में हिस्सा नहीं लेने की संभावना जताई जा रही है.
अमरीका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं. अमरीका का दबाव है कि दुनिया के देश ख़्वावे को 5जी का कॉन्ट्रैक्टन दें. अमरीका उन देशों को 5जी तकनीक विकसित करने में मदद करने का भरोसा भी देता रहा है, जो देश ख़्वावे की सेवाएँ लेने सेइनकार करते हैं.
भारत और चीन के बीच हाल ही में जो स्थितियाँ बनी हैं, उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा रही है कि भारत ख़्वावे को लेकर अमरीकाके साथ जाने पर गंभीरता से विचार कर सकता है. तब ऐसी स्थिति में भारत के पास फ़िनलैंड की कंपनी नोकिया, स्वीडन की कंपनीएरिक्सन और दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग का विकल्प बचेगा.
भारत के 5जी के सपने पर क्या असर पड़ेगा?
तब ऐसी स्थिति में भारत के महत्वाकांक्षी 5जी प्रोजेक्ट के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा.
इस पर टेलीकॉम कंसल्टेंट महेश उप्पल कहते हैं, “स्पेक्ट्रम की नीलामी में टेलीकॉम सर्विस कंपनियाँ भाग लेती हैं. उसके बाद येसर्विस कंपनियाँ ख्वावे, नोकिया या फिर एरिक्सन जैसी कंपनियों का तकनीक इस्तेमाल करती हैं. ये कंपनियाँ अपनी तकनीकसर्विस देने वाली कंपनी को देती है. तो सीधे तौर पर ये तकनीक मुहैया कराने वाली कंपनियाँ नीलामी का हिस्सा नहीं होती हैं.”
लेकिन स्पेक्ट्रम की नीलामी में वोडाफोन, आइडिया और एटरटेल जैसी सर्विस कंपनियों की हिचक को देखते हुए क्या संभावनाँए बनपाएंगी.
महेश उप्पल कहते हैं, “स्पेक्ट्रम की नीलामी खुली हुई होती है. तकनीकी तौर पर इसमें नई कंपनियों को भी शामिल होने की इजाज़तमिली होती है. सैद्धांतिक तौर पर इसमें दूसरी कंपनियाँ भी शामिल हो सकती है. मान लीजिए कि कल किसी वजह से ब्रिटिशटेलीकॉम या फिर डायचे टेलीकॉम जैसी कंपनियाँ सर्विस देना चाहती है तो वो दे सकती हैं.”
लेकिन ख्वावे पर प्रतिबंध लगा देने की स्थिति में सर्विस मुहैया कराने वाली कंपनियाँ तकनीक के लिए उसका चयन नहीं कर पाएँगी.
महेश उप्पल बताते हैं कि चीनी कंपनियाँ कम लागत वाली मानी जाती हैं, इसलिए अगर इन कंपनियों का विकल्प होगा तो वोनिश्चित तौर पर सर्विस मुहैया कराने वाली कंपनियाँ इसके प्रति आकर्षित होंगी. अगर ख्वावे का विकल्प नहीं होगा तो निश्चित तौरपर कमर्शियल फ्लेक्जीबिलिटी कम हो जाएगी.
भारत 5जी को लेकर कितना तैयार है?
पत्रकार और तकनीकी मामलों के जानकार आशु सिन्हा कहते हैं कि भारत शायद अभी 5जी के लिए तैयार नहीं है. इसका कारण यहहै कि 4जी में जिन टेलीकॉम कंपनियों ने पैसे लगाए हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से जो धक्का लगा है, क्या वो इसके बावजूदफिर से 5जी में पैसा लगाने को तैयार होंगी.
अभी तो इन कंपनियों की 4जी से ही पूरी तरह से कमाई नहीं हो पाई है. अगर आप रिलायंस की बात करेंगे, तब तो वो तैयार होजाएँगे लेकिन दूसरों की ऐसी स्थिति नहीं है. आने वाले वक्त में डिवाइस ज़्यादा से ज़्यादा कनेक्टेड होंगे और इसके लिए जियो तैयारहै.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में केंद्र सरकार की याचिका को मंज़ूर करते हुए केंद्र सरकार को टेलीकॉम कंपनियों से लगभग92,000 करोड़ रुपए का समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) वसूलने की इजाज़त दी थी.
आशु सिन्हा आगे कहते हैं कि भारत और चीन का बाज़ार इतना बड़ा है कि ये देश 5जी का अपना ही स्टैंडर्ड शुरू कर सकते हैं. सीडीएमए और जीएसएम अभी दो बड़े स्टैंडर्ड हैं.
जीएसएम यूरोपीय कंपनी का स्टैंडर्ड है तो वहीं सीडीएमए अमरीकी कंपनियों का. वैसे ही भारत और चीन का अपना स्टैंडर्ड होसकता है लेकिन इसके लिए दूरदर्शिता की ज़रूरत होती है जिसका सरकार में भारी अभाव है. इसके लिए जिस इको–सिस्टम कोतैयार करने की ज़रूरत होती है, उसे सरकार सोचने में भी असमर्थ है.
अमरीका और चीन के बीच तनावपूर्ण व्यापारिक संबंध
साल 2019 में जापान के ओसाका में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात हुई थी.
उस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बात की घोषणा की थी कि वो अमरीकी कंपनियों को चीन की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में सेएक ख़्वावे को बिक्री जारी रखने की अनुमति देते हैं.
ट्रंप की इस घोषणा को एक बहुत बड़ी छूट के तौर पर देखा गया था. यह घोषणाएँ अपने आप में ख़ास इसलिए थीं क्योंकि इससेपहले अमरीका ने चीन पर अतिरिक्त व्यापारिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी.
इससे पहले ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया था कि वो उनकी बौद्धिक संपदा चुराने की कोशिश कर रहा है. अमरीका ने ये भी आरोपलगाया था कि चीन, अमरीकी कंपनियों को उनके यहाँ व्यापार के बदले व्यापार से जुड़ी खुफ़िया जानकारी देने के लिए मजबूर कररहा है. इसके बदले में चीन ने कहा था कि व्यापार सुधार के लिए अमरीका की मांगें अनुचित हैं.
ख़्वावे को लेकर अमरीका का संशय
अमरीका पहले भी ख़्वावे को लेकर अपना संशय जाहिर कर चुका है. अमरीका ने सार्वजनिक रूप से पिछले साल कहा था कि ख़्वावेराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है. हालांकि, ट्रंप ने इसे व्यापारिक मुद्दे से भी जोड़कर बताया था.
अमरीका ने ख़्वावे पर जासूसी करने का आरोप लगाया था.
इसके अलावा पिछले साल मई में अमरीका ने ख़्वावे पर बिना लाइसेंस के अमरीकी सामान ख़रीदने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसमेंगूगल भी शामिल था जो ख़्वावे के कई उत्पादों के लिए बेहद अहम है.
लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान यू टर्न लेते हुए ट्रंप ने अमरीकी कंपनियों को ख़्वावे को बिक्री जारी रखने की अनुमति दे दीथी. अब एक बार फिर अमरीका ने ख़्वावे को लेकर सख़्त कदम उठाया है.
हालांकि बीबीसी को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में ख़्वावे के संस्थापक रेन झेंगफेई ने कहा था कि वो जासूसी जैसे काम में शामिलहोने की बजाय कंपनी को बंद करना ज़्यादा मुनासिब समझेंगे. उन्होंने कहा था कि अमरीका उन्हें बर्बाद नहीं कर सकता. हमतकनीकी रूप से अधिक विकसित हैं इसलिए दुनिया हमें नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती.
उन्होंने इस इंटरव्यू में अपनी बेटी की गिरफ़्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया था. उनकी बेटी मेंग वानझू को अमरीका के कहने पर 1 दिसंबर,2018 को वैंकुवर में गिरफ़्तार कर लिया गया था. उनकी बेटी ख़्वावे की मुख्य वित्तीय अधिकारी हैं.
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