कोरोना से पहले यानी साल 2020 की पहली तिमाही तक खेल मैदान से लेकर साथियों के बीच आउटडोर गेम में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले बच्चे अब सोशल मीडिया फेसबुक और अन्य पर लाइक-कमेंट ढूंढने में व्यस्त हो रहे हैं। बच्चों की इस आदत ने उन्हें फीयर ऑफ मिसिंग आउट यानी फोमो नामक बीमारी की चपेट में ला दिया है। कोरोना संक्रमण के बाद बड़ी संख्या में बच्चे-किशोर व युवक फोमो की चपेट में आए हैं।
गहरे डिप्रेशन में चले जा रहे
इस बीमारी में दूसरों की जिंदगी में अपनी अहमियत कम या खत्म होने का आभास होता है। इससे ग्रसित युवा इंटरनेट पर लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहां भी अपेक्षित लाइक व कमेंट न मिलने से कुंठा के शिकार हो रहे हैं और गहरे अवसाद में चले जा रहे हैं। मायागंज अस्पताल के मनोरोग विभाग के ओपीडी में रोज फोमो की चपेट में आये दो से तीन बच्चे, किशोर व युवा इलाज को आ रहे हैं। अभिभावक परेशान हैं कि बच्चा किताब नहीं खोलता है और दिनभर फेसबुक पर लाइक व कमेंट देखता रहता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज कुमार ने बताया कि “इंटरनेट मीडिया की तरफ बच्चों का रुझान कोरोना काल में बढ़ा है। जब खेल के मैदान खाली हो गए। अब तो मोहल्ले के बच्चे भी पार्कों में नहीं जाते हैं। इसलिए वे इंटरनेट मीडिया से तेजी से जुड़ने लगे। फेसबुक पर फोटो डालने से लाइक व कमेंट नहीं मिलने से बच्चों में बड़ी तेजी के साथ निराशा व कुंठा जन्म ले रही है।”
डॉ. अशोक कुमार भगत ने बताया कि “इंसान भीड़ में भी अपनी एक अलग पहचान चाहता है। नारसिज्म व हिस्टोरियोनिक व्यक्तित्व वाले दूसरों की जिंदगी में अपना महत्व ढूंढ़ते हैं। उसे जब यह घर या पड़ोस में नहीं मिलता है तो वह इंटरनेट मीडिया पर खोजने की कोशिश करते हैं। वहां वे लाइक-कमेंट नहीं पाने की स्थिति में कुंठा के शिकार हो जाते हैं।”
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