बाढ़ और भारी बारिश ने वैशाली जिले के किसानों पर कहर बरपा रखा है। एक तो यहां के किसान पहले ही लॉकडाउन का दंश झेल रहे थे। अब यह जलजमाव इन लोगों के लिए किसी आफत से कम नहीं साबित हो रहा है।
गोरौल और आस-पास के लीची किसान इससे परेशान हैं। यहां जल जमाव के कारण लीची के पेड़ सूख रहे हैं। अपने स्वाद के लिये मशहूर गोरौल की लीची देश के कई प्रदेशों में भेजी जाती है।
इस किसान इस उहापोह में हैं कि वे करें तो क्या करें, किस चीज की खेती करें। किसानों ने बताया कि वे अपनी जीविका चलाने के लिए लीची की खेती करते हैं। यह इनकी आय का प्रमुख माध्यम है। लेकिन अब वह भी सुरक्षित नहीं रह पा रहे हैं।
भगवानपुर प्रखंड के मांगनपुर ,सिहमा, प्रतापटांड़, गोरौल प्रखंड के आदमपुर ,कटरमाला महमदपुर दरिया, इस्लामपुर , वशीपुर , बहादुरपुर जैसे कई गांव हैं, जहां के किसान लीची का खेती कर लाखो लाख की आमदनी कर लेते हैं। यही इनकी खुशहाली का मुख्य फसल माना जा रहा है।
लेकिन दो वर्षों से कोरोना को लेकर किसान औने पौने दामों में लीची बेच कर अपने बदहाली पर रो ही रहे थे। किसानों का यह दर्द अभी कम नही हुआ कि बाढ़ एवं अधिक बारिश के जलजमाव के कारण इन किसानों के लीची सूखने लगे।
इनकी आमदनी का जरिया ही खत्म होते जा रहा है । लीची को लेकर ही गोढियां मंडी का निर्माण हुआ और लीची को लेकर ही गोढियां मंडी प्रचलित हुई । जहां से लीची के मौसम में प्रतिदिन देश के विभिन्न प्रदेशों उत्तर प्रदेश , मुंबई , मध्यप्रदेश , झारखंड , पश्चिम बंगाल , पंजाब , हरियाणा जैसे शहरों में भेजी जाती थी।
इस मौसम में मंडी का दृश्य एक मेले की तरह हो जाता था। लीची के पौधे सूखने से किसान अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित एवं परेशान दिख रहे हैं । च्द्रिरका प्रसाद सिंह, संतोष सिंह, शम्भु साहनी, संजय सिंह, लक्षमी साह, ललितेशवर सिंह, रंजीत साहनी, जवाहरलाल सिंह , विपिन पांडेय , शिवकुमार सिंह , रूपेश सावर्ण , शम्भू पांडेय सहित अन्य किसानों ने बताया कि हमलोग हर खेती को छोड़ लीची के फसल को इसलिये प्रधानता देते है कि इसमें कम मेहनत पर अच्छी खासी आमदनी हो जाती है।
लेकिन लगभग दो वर्षों से लीची के फसल पर ग्रहण लग गया है। लीची के पौधे सूखने से हम किसानों का भविष्य ही अंधकार में चला गया है । इसी पर आश्रित रहने वाले किसान करे तो क्या करे । इन किसानों के साथ भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गयी है ।
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