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पढ़ाई का टेंशन दूर करें पल भर में

परीक्षा में अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थी ही योग्य माने जाने लगे हैं। कम या औसत अंक वाले विद्यार्थी कमजोर माने जाते हैं। इसलिए विद्यार्थियों पर परीक्षा का दबाव बना रहता है। इससे वे मानसिक तनाव की चपेट में भी आ जाते हैं। इसलिए आज शिक्षा व्यावसायिक होती जा रही है।

किंतु सुखद बात यह है कि शिक्षाविदों और सरकारों का ध्यान इस ओर गया है तथा इसमें अब परिवर्तन आने लगा है। मातृभाषा में शिक्षा दिलाना, इसका एक बड़ा उदाहरण है। आज के समय में हिंदी में चिकित्सीय एवं तकनीकी शिक्षा उपलब्ध करवाना किसी स्वप्न से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व तक इस बारे में सोचना भी सरल नहीं था। यह एक सार्थक पहल है। भविष्य में इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे।

मानव के लिए जितने आवश्यक वायु, जल एवं भोजन है, उतनी ही आवश्यक शिक्षा भी है। इसलिए शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो विद्यार्थियों को अक्षर ज्ञान देने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व का भी विकास करे। हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ऐसी ही थी। शिक्षा का प्रथम उद्देश्य ही विद्यार्थी के चरित्र का निर्माण करना होता है। हमारी भारतीय संस्कृति में चरित्र निर्माण पर सर्वाधिक बल दिया गया है, क्योंकि चरित्र के बिना किसी भी गुण का कोई महत्व नहीं है।

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