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देश के पहले बुनियादी स्कूल को पहचान का संकट, 1917 में महात्मा गांधी ने की थी स्थापना

मोतिहारी:   देश का पहला बुनियादी स्कूल। आजादी के दौरान विदेशी का बहिष्कार और स्वावलंबन का संदेश देने का केंद्र। बच्चों की पढ़ाई के साथ लोगों को स्वरोजगार की सीख देने की पहल यहां हुई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यहां छह महीने रहकर लोगों को स्वरोजगार का पाठ पढ़ाया। आज यह स्कूल पहचान के संकट से जूझ रहा है। 106 साल बाद इस स्कूल को फिर किसी तारणहार का इंतजार है, ताकि इसका गौरव दोबारा स्थापित कर सके। पूर्वी चंपारण जिले के ढाका प्रखंड के बड़हरवा लखनसेन में स्थित देश के पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना महात्मा गांधी ने चम्पारण यात्रा के दौरान 13 नवंबर 1917 को की थी।

Hindustan Special: देश के पहले बुनियादी स्कूल को पहचान का संकट, 1917 में महात्मा गांधी ने की थी स्थापना

जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर बड़हरवा लखनसेन में इस स्कूल के लिए गांव के शिव गुलाम बख्शी ने अपना मकान दान दे दिया था। स्थापना के बाद विद्यालय में शिक्षा देने के लिए महात्मा गांधी ने अपने छोटे पुत्र देवदास गांधी, मुंबई से बबन गोखले, उनकी पत्नी अवंतिका बाई गोखले, साबरमती सत्याग्रह आश्रम से छोटेलाल व सुरेन्द्र जी को बुलाया। यहां शिक्षा के साथ स्वरोजगार की शिक्षा भी दी गई। गांधी स्वयं छह माह तक रहकर लोगों में देशभक्ति का जज्बा भरते रहे और अंग्रेजों के नील की खेती का विरोध करने के लिए प्रेरित किया।

स्थानीय लोगों को मलाल है कि इतनी महत्वपूर्ण विरासत इस विद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कभी कोई सार्थक पहल नहीं की गई। राजनेता से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी तक यहां आये, लेकिन केवल घोषणाएं हुईं। इस बुनियादी विद्यालय को प्लस टू तक उत्क्रमित कर दिया गया लेकिन एक भी शिक्षक की प्रतिनियुक्ति नहीं हो पाई। यहां आने वाले पर्यटक भी निराश होकर लौट जाते हैं। यहां पर्यटकों के ठहरने के लिए एक गेस्ट हाउस का निर्माण किया गया है, लेकिन उसपर कब्जा हो गया है।

बापू द्वारा स्थापित इस विद्यालय में आज भी बापू से जुड़ी कई यादें जीवंत हैं, लेकिन इन्हें सहेजा नहीं जा रहा। बापू जिस चरखे से वे सूत कातते थे, वह चरखा भी इस स्कूल में मौजूद है। इसके अलावा, लकड़ी की मशीन, ग्लोब, घड़ी व अन्य सामान एक कमरे में धूल फांक रहे हैं। नशामुक्ति को लेकर भी गांधी जी ने अभियान चलाया था। उन्होंने लोगों से नशा का त्याग करने की अपील की। इसके लिए उन्होंने हुक्का को बरगद के पेड़ पर लटका दिया था। वह बरगद का पेड़ आज भी यहां मौजूद है।

इस स्थल के विकास के लिए ग्रामीणों ने महात्मा गांधी स्मारक सह ग्राम विकास समिति का गठन किया है। समिति अपने स्तर पर समय-समय पर कार्यक्रम करती है। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को बुलाकर इस ओर ध्यान दिलाया जाता है। समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश पांडेय, सचिव मो. कमाल हसन ने बताया कि कई बड़े नेताओं और अधिकारियों ने इसके विकास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं, लेकिन वे धरातल पर नहीं उतरीं।

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखित पुस्तक ‘चम्पारण में गांधी’ में भी इस विद्यालय का जिक्र है। उन्होंने लिखा है कि जब गांधी जी चम्पारण आये तो उन्होंने मोतिहारी से बीस मील दूर पूरब दिशा में बड़हरवा लखनसेन में एक विद्यालय खोलने का निर्णय लिया क्योंकि वह बेतिया राज के सौर कब्जा में था। यहां अंग्रेजों की कोठी का कोई अधिकार नहीं था। स्थानीय विधायक पवन जायसवाल ने कहा कि विद्याालय को प्लस टू में उत्क्रमित कराया गया है। इसके विकास के लिए कार्ययोजना तैयार का इसे विकसित किया जाएगा।

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