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बिहार और कांग्रेस, राजनीतिक उथल-पुथल

बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। करीब 25 साल तक आरजेडी और लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में रहने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस इस बार दमखम दिखाने में मूड में दिख रही है।

वर्ष 1990 के बाद से बिहार की राजनीति में ओबीसी का वर्चस्व रहा है, जो नीतीश कुमार के रूप में अब तक जारी है। कांग्रेस का मानना है कि बिहार में बिना ओबीसी को अपने पाले में किए हुए ताकत नहीं हासिल की जा सकती है।

बिहार में पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.13 फीसदी और अति पिछड़ा वर्ग संख्‍या 36.01 फीसदी है। पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा मजबूत यादव करीब 14 फीसदी हैं, जिसपर करीब-करीब लालू यादव और उनके परिवार की पकड़ बरकरार रहती है।

माना जा रहा है कि कांग्रेस बिहार में पिछलग्गू का धब्बा मिटाने और अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश में है। इसके लिए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कृष्णा अल्लावरु को राज्य प्रभारी बनाया है।

वैसे, 1990 के बाद से बिहार की राजनीति में ओबीसी का वर्चस्व रहा है। नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में बड़ा चेहरा हैं। कांग्रेस का मानना है कि बिहार में बिना ओबीसी को अपने पाले में किए हुए ताकत नहीं हासिल की जा सकती है। वहीं, दलित नेता राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। जबकि कन्हैया कुमार को बिहार में यात्रा करने की जिम्मेदारी सौंपी है।

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