पटना: बिहार में जारी जातीय गणना पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक नहीं लगाया है। सोमवार को इस मामले पर होने वाली सुनवाई को 13 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है। अब 14 अगस्त को इस पर अगली सुनवाई होगी। पटना हाईकोर्ट द्वारा जातीय गणना पर रोक नहीं लगाए जाने के फैसले बाद सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती दी गयी थी। सोमवार को उस पर सुनवाई की गई। लेकिन, कई लोगों के द्वारा याचिका दायर किए जाने पर तय हुआ कि सभी की सुनवाई एक साथ की जाए। इसके लिए अब अगली तारीख 14 अगस्त तय की गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्जेंसी क्या है। अगर 80 प्रतिशत काम हो गया है तो 90 प्रतिशत हो जाएगा। उससे क्या फर्क पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के रुख से नीतीश सरकार को फिलहाल बड़ी राहत मिली है।
बिहार में जातीय गणना के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने के साथ बताया गया कि इसे लेकर कई याचियाकाएं दर्ज कराई गई हैं। डिमांड किया गया कि सभी मामलों की सुनवाई एक साथ की जाए। माननीय न्यायालय ने इस मांग पर अपनी सहमति जताई और सभी याचिकाकर्ताओं की दलील को मानते हुए एक साथ सुनवाई के लिए 14 अगस्त की तारीख तय कर दी गई। इस मामले में बिहार सरकार ने कैविएट दाखिल किया हुआ है। माननीय कोर्ट ने इस मामले में बड़ा ऑबजर्वेशन यह दिया कि जब तक दूसरे पक्षकार को नहीं सुना जाएगा तबतक रोक लगाने या हाईकोर्ट के फैसले के पहले की यथास्थिति बहाल रखने के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया जा सकता है। इससे बिहार सरकार के लिए राहत के बड़े संकेत हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जब 80 फीसदी काम हो चुका है तो रोक लगाने को लेकर कोई अर्जेंसी नहीं है। पटना हाईकोर्ट के फैसले को एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एक सोच एक प्रयास’ ने याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष सात अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी।
नालंदा निवासी अखिलेश कुमार द्वारा भी याचिका दायर की। याचिका में दलील दी गई है कि जातीय गणना के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, केवल केंद्र सरकार को जनगणना का अधिकार है। मौजूदा मामले में बिहार सरकार ने आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना प्रकाशित करके केंद्र सरकार के अधिकारों का हनन किया है।
वकील बरुण कुमार सिन्हा के जरिये दायर याचिका में कहा गया कि छह जून, 2022 की अधिसूचना राज्य एवं संघ विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना करने की पूरी प्रक्रिया ‘किसी अधिकार और विधायी क्षमता के बिना की गई है और इसमें दुर्भावना नजर आती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर इस बात पर जोर देते रहे हैं कि राज्य जाति आधारित जनगणना नहीं कर रहा है, बल्कि केवल लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी एकत्र कर रहा है ताकि सरकार उन्हें बेहतर सेवा देने के लिए विशिष्ट कदम उठा सके।
इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हम राज्य सरकार के इस कदम को पूरी तरह से वैध पाते हैं और वह इस सर्वेक्षण को कराने में सक्षम है। इसका मकसद लोगों को न्याय के साथ विकास प्रदान करना है। पटना हाईकोर्ट द्वारा बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को वैध करार दिए जाने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आई थी और उसने शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया था ताकि इस कवायद को शीघ्र पूरा करने के लिए उन्हें इसमें शामिल किया जा सके।
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