किशनगंज: किशनगंज के बागानों में उपजने वाली चाय पत्ती की खुश्बू अब देश-विदेश में फैलेगी। इसके लिए कृषि विभाग पहल कर रहा है। इससे किशनगंज समेत पूरे बिहार का कद देश भर में बढ़ जाएगा। साथ ही सीमांचल के इलाके में कृषि क्षेत्र में नई क्रांति आएगी। अब तक बिहार को लोग ज्ञान और ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि ही मानते हैं। लेकिन चाय के क्षेत्र में इस क्रांति के बाद बिहार को औद्योगिक क्षेत्र में भी पहचान मिलेगी।
दरअसल, कृषि विभाग किशनगंज में उपजने वाली चाय पत्ती को अब देश-दुनिया में बिहार टी के नाम से पहुंचाने की तैयारी कर रहा है। विभाग इसकी लांचिंग की तैयारी कर रहा है। इस बाबत कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने बताया कि जल्द उद्योग मंत्री और विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक होने वाली है। इसके बाद पूरा रोडमैप तैयार हो जाएगा। किशनगंज से चाय पत्ती की खरीद करने वाले और दूसरे प्रदेशों में फैक्ट्री चलाने वाले उद्यमियों से भी उनकी वार्ता हो चुकी है। मंत्री ने कहा कि बाहर के व्यापारी किशनगंज के किसानों से चाय पत्ती औने-पौने दामों में खरीदते हैं और दूसरे प्रदेशों में लगायी फैक्ट्री में तैयार कर बाजार में बेचते हैं। लेकिन चाय के क्षेत्र में बिहार का यह अपना ब्रांड होगा। इससे जुड़े कारोबारियों को बिहार में ही सुविधा दी जाएगी। इसमें उद्योग विभाग से मदद ली जाएगी।
मंत्री ने कहा कि इस योजना से किशनगंज में चाय उत्पादन को गति मिलेगी और इसकी खेती से जुड़े किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। उन्हें वाजिब कीमत मिलेगी। जब यहां फैक्ट्रियां लगेंगी और यहां से प्रोसेस होकर चाय पत्ती देश-दुनिया के बाजार में जाएगी। इससे आसपास में भी चाय पत्ती के उत्पादन की चाहत बढ़ेगी। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा और किसानों को भी हर तरह की सुविधा दी जाएगी। बिहार का सीमावर्ती जिला किशनगंज नेपाल, बंग्लादेश और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है। हाल के दिनों में किशनगंज की पहचान तेजी से उभरते चाय उत्पादक इलाके के रूप में बनी है। चाय उत्पादन के क्षेत्र में यह जिला राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी पहचान बना रहा है।
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में किशनगंज में लगभग 15000 एकड़ भूमि पर चाय के बागान हैं और 200 से अधिक किसान इससे जुड़े हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां उत्पादित होने वाली चाय की गुणवत्ता ऐसी है कि इसकी मांग देश के सभी कोनों में है। लेकिन अपनी कोई पहचान नहीं है। इसलिए बाहर के व्यापारी यहां से चाय पत्ती खरीदकर चले जाते हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो किशनगंज के पांच प्रखंड किशनगंज, पोठिया, ठाकुरगंज, बहादुरगंज और दिघलबैंक की मिट्टी और जलवायु चाय बागान के लिए बहुत उपयुक्त हैं।
किशनगंज में 1993 से शुरू हुई चाय की खेती
स्थानीय लोगों की मानें तो किशनगंज में वर्ष 1993 में प्रायोगिक आधार पर पोठिया प्रखंड के एक गांव में मात्र 5 एकड़ जमीन पर चाय बागान की शुरुआत की गई थी। शुरुआत में एक प्रयोग के रूप में जो शुरू हुआ था, वह अब एक फलते-फूलते व्यापार में विकसित हो गया है। आज किशनगंज पर चाय के बड़े व्यापारियों से लेकर छोटे किसानों तक की नजर है। एक-दो प्रोसेसिंग यूनिट भी लगायी गई, लेकिन बहुत प्रभावी नहीं है। अब कृषि विभाग संजीदगी से इसको प्रोमोट करने की कवायद में जुटा है।
Be First to Comment