मुजफ्फरपुर: बिहार की शिक्षा व्यवस्था नीतीश-राजद सरकार में लगातार रसातल में जा रही है। गुणवत्ताविहीन शिक्षा के कारण आज बिहार से हजारों युवाओं का पलायन हो चुका है लेकिन फिर भी बिहार सरकार के पास स्थिति में सुधार का कोई रोडमैप नहीं है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम लागू करने से बिहार सरकार के हाथ खींचने के कदम कड़े शब्दों में निंदा करती है। इस कदम से स्पष्ट हो गया है कि नीतीश राजद सरकार प्रदेश के युवाओं के भविष्य को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं है।
महामहिम राजेन्द्र आर्लेकर के बिहार राज्यपाल के रूप में सकारात्मक प्रयासों पर बिहार सरकार अपनी दिशाहीनता के कारण रोड़े अटकाने का काम कर रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यह मांग करती है कि नीतिश कुमार यह बताएं कि बिहार की गर्त में जा चुकी शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के लिए वे क्या कर रहे हैं। बिहार में शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी ढांचे के प्रभाव भारी संख्या में शैक्षणिक व शैक्षणिक पदों की रिक्तियां, सत्र में विलंब भारी भ्रष्टाचार के कारण प्रदेश के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बिहार के शिक्षा क्षेत्र में इन स्थितियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने कहा कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था नीतीश कुमार की निम्नस्तरीय तथा मूल्यहीन राजनीति का शिकार हो गई है। नीतीश-राजद सरकार की नीतियों के कारण युवाओं का भविष्य अंधकारमय तथा अनिधितताओं से भर गया है।
चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम लागू करने से पीछे हटना बिहार सरकार का अब तक का सबसे निम्न स्तरीय कृत्य है। बिहार की शिक्षा व्यवस्था जब बर्बाद हो रही थी, तब केके पाठक जैसे अधिकारी कहां थे? के के पाठक सहित अन्य अधिकारियों को राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के पीछे के कारकों का अध्ययन करना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे विजनरी नीति का अध्ययन भी किया जाना चाहिए। राजभवन की मर्यादा तथा सम्मान के साथ बिहार सरकार खिलवाड़ कर रही है। शिक्षा मंत्री कुलपतियों के साथ बैठक कर रहे है, जबकि उन्हें राजभवन के साथ सार्थक संवाद रखते हुए यह प्रक्रिया करनी चाहिए। बिहार सरकार को अपने कुत्सित प्रयासों द्वारा गलत परंपरा की बुनियाद रखने से बचना होगा। अभाविप के बिहार प्रदेश मंत्री अभिषेक यादव ने कहा कि बिहार के युवाओं के भविष्य को अंधकारमय तो पहले ही नीतीश कुमार कर चुके है, अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से पीछे हटकर बची हुई आशाओं को भी सरकार निवांजलि देना चाहती है। शिक्षा मंत्री और नीतीश कुमार को राजभवन के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए था, लेकिन यहां तो नीतीश कुमार सकारात्मक बदलावों पर कुंडली मारकर बैठ गए हैं। इस तरह की स्थिति पूरी तरह बदलनी चाहिए। इन्फ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की कमी का रोना को लोग से रहे हैं जो पिल्ले 25 वर्षों से सत्ता पर काबिज है। क्या येलोग कोई समय सीमा निर्धारित कर सकते है जब वे इफास्ट्रक्चर ठीक कर देंगे और शिक्षकों की कमी को भी दूर कर देंगे ?
सरकार एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक व्यवस्था होती है। इसके एक अपर मुख्य सचिव महामहिम के साथ मीटिंग का हिस्सा बनते हैं और सरकार की स्वीकारोक्ति देते हैं CBCS वागू करने के लिए और दूसरे जब आते हैं तो कहते हैं कि सरकार की राय द्वार है। यह सरकार दुर्भावना अस्त और कन्फ्यूज्ड रहती है। मेरी सलाह है कि ये लोग राजनीतिक लड़ाई लड़े परंतु अपने राजनीतिक फायदे के लिए बिहार के विद्यार्थियों के भविष्य के साथ के खिलवाड़ नहीं करो जब पूरे भारत में NEP 2020 अडॉप्ट कर कबक्स लागू हो जाएगा और बिहार में लागू नहीं होगा तब बिहार के बच्चों की डिसी बाहर से कहीं भी मान्य नहीं होगी और उच्च शिक्षा के लिए भी यहाँ के बच्चों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्था में जाकर पड़ने का अवसर सील जाएगा।
विश्विद्यालयों में विद्यार्थियों के हित में फायदेमंद को स्ट्रक्चर डिसाइड करना कुलाधिपति महोदय का एकाधिकार होता है, इसमें किसी भी जिम्मेवार सरकार को दखलदानी नहीं करनी चाहिए अगर CRICS अभी अष्ट नहीं होता है सब बिहार के बच्चे पिछले 20 सात से तो अवसर का सेना से ही रहे थे। अगले 5 वर्षों तक उनको ACADEMICALLY INFERRIOR होने का रिमा तमा रहेगा सरकार से अपील है कि नकारात्मकता छोड़कर बच्चों के भविष्य के महेनजर बिहार के अकादमिक स्तर में सुधार लाने हेतु महामहिम द्वारा किए जा रहे प्रवास को अपना समर्थन प्रदान करे नहीं तो विद्यार्थी परिषद बिहार के विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य हेतु अपनी लड़ाई सड़क से संसद तक जारी रखेगा।
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