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वट सावित्री व्रत 2024: इस कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री व्रत, जानें

वट सावित्री 2024: इस साल वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा। यह ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन सावित्रि अपने पति के सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी। यूपी, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड में इस व्रत की बहुत मान्यता है।

वट सावित्री व्रत में क्यों की जाती है बरगद के पेड़ की पूजा? | Vat Savitri  Vrat 2024 Bargad Tree Puja Importance | TV9 Bharatvarsh

 

इसे ज्येष्ठ कृष्णपक्ष त्रयोदशी से अमावस्या यानी तीन दिन तक मनाने की परम्परा हैदक्षिण भारत में यह वट पूर्णिमा के नाम से ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बड़ के पेड़ के नीचे पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह बड़ के पेड़ की उम्र लंबी होती है, उसी तरह महिलाओं के पति की उम्र भी लंबी हो।  वट वृक्ष को आयुर्वेद के अनुसार परिवार का वैद्य माना जाता है।

 

पुराणों में वर्णित सावित्री की कथा इस प्रकार है:- राजा अश्वपति की अकेली संतान का नाम था सावित्री। सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान को से विवाह किया। विवाह से पहले उन्हें नारद जी ने बताया कि सत्यवान के आयु कम है, तो भी सावित्री अपने फैसले से डिगी नहीं। वह सत्यवान के प्रेम में सभी राजसी वैभव त्याग कर  उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए।  वहां मू्च्छिछत होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, अत: बिना परेशान हुए  यमराज से सत्यवान के प्राण वापस देने की प्रार्थना करती रही, लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन  माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं। इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं, उस पर धागा लपेट कर पूजा करती हैं।

 

 

 

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