पटना: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव और नीतीश कुमार के चहेते आईएएस अफसर केके पाठक बिहार के सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन की व्यवस्था सुधारने के लिए लगातार एक के बाद एक फरमान जारी कर रहे हैं। इस बीच उनके कई आदेशों से बिहार की राजनीति में भी खलबली मचती रही है। स्कूलों की टाइमिंग को लेकर केके पाठक के एक हालिया आदेश ने बवाल मचा रखा है। जेडीयू के सहयोगी बीजेपी के एमएलसी नवल किशोर यादव ने दावा किया है कि केके पाठक के आदेशों से सरकार की छवि खराब हो रही है।
दरअसल केके पाठक ने स्कूलों की टाइमिंग को लेकर नया आदेश जारी किया है जिसके अनुसार सभी सरकारी विद्यालय सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक संचालित होंगे। शिक्षकों को स्कूल से 1:30 बजे के बाद जाना होगा क्योंकि अंतिम डेढ़ घंटे में कमजोर बच्चों को कोचिंग दी जाएगी। स्कूलों की टाइमिंग में इस बदलाव से केके पाठक शिक्षकों के साथ-साथ नेताओं के निशाने पर आ गए हैं। विपक्षी दलों के साथ-साथ सत्ताधारी पार्टी के विधायक भी सरकार से सवाल पूछने लगे हैं कि शिक्षकों को प्रताड़ित क्यों किया जा रहा है।
भारतीय जनता पार्टी के विधान पार्षद नवल किशोर यादव का बड़ा बयान सामने आया है। नवल किशोर यादव शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी चुने गए हैं। उन्होंने 6:00 बजे से 1:30 बजे तक स्कूलों को चलाने पर सवाल खड़ा किया है कहा है कि इस तरह के फैसले से सरकार की छवि को केके पाठक बिगड़ रहे हैं। विभाग का यह फैसला शिक्षकों को प्रताड़ित करने वाला है। इससे पहले जेडीयू के विधायक पंकज मिश्रा ने कहा है कि केके पाठक को सोच समझकर कोई काम करना चाहिए। उनकी मनमानी नहीं चलेगी। यह बात सीएम नीतीश कुमार के संज्ञान में चली गई है। केके पाठक का यह फैसला निरस्त होने की स्थिति में है। आज हो, कल हो या परसो हो इसे जल्द निस्प्रभावी कर दिया जाएगा क्योंकि इससे बच्चे भी बीमार पड़ रहे हैं और शिक्षक भी। पंकज मिश्रा ने कहा कि केके पाठक का यह फैसला गलत है।
कांग्रेस के नेताओं ने भी शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर केके पाठक का आदेश निरस्त करने के लिए दबाव बनाया है। कहा कि इतने सुबह उठकर शिक्षक और शिक्षिकाएं स्कूल कैसे पहुंचेगे। कई जगहों पर यातायात के साधन भी नहीं हैं। घर की जिम्मेदारी महिला शिक्षकों पर होती है।य़ इतनी सुबह उठना फिर सारा काम करके स्कूल पहुंचना उनके सेहत के अनुकूल नहीं होगाय़ कांग्रेस नेता शकील अहमद ने भी इस पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि ना तो बच्चे के लिए सही है ना ही शिक्षकों के अनुकूल है। इससे पढ़ाई की क्वालिटी में घटोतरी आएगी। शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर आन्दोलन शुरू कर दिया है।
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