बिहार: खान-पान के मामले में बिहार की पहचान लिट्टी-चोखा को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी। लिट्टी-चोखा को जीआई टैग दिलाने की तैयारी हो रही है। इसके लिए भागलपुर जिले के सबौर स्थित बिहार कृषि विवि के अंतर्गत आने वाले भोजपुर के कृषि विज्ञान केंद्र ने पहल की है।
भोजपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक और हेड डॉ. प्रवीण कुमार द्विवेदी ने बताया कि जल्द जीआई टैग के लिए आवेदन किया जाएगा, तैयारी पूरी हो गई है। निर्धारित प्रक्रिया पूरी होने के बाद जीआई का प्रमाणपत्र मिल जाने की उम्मीद है।
भोजपुर का मूल व्यंजन लिट्टी-चोखा उत्तर भारत के अलावा कुछ देशों में भी लोकप्रिय है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डीआर सिंह ने कहा कि जीआई मिलने के बाद लिट्टी चोखा की देश-दुनिया में ब्रांडिंग कराई जाएगी। युवाओं को इस क्षेत्र से जुड़ने को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे जुड़े स्टार्टअप शुरू करने वाले युवाओं को प्रशिक्षण आदि दिए जाएंगे।
लिट्टी-चोखा का इतिहास पुराना है। यह व्यंजन चंद्रगुप्त मौर्य के समय ही प्रचलन में आ गया था। बाद में सैनिकों ने इसे दूर-दूर तक फैलाया था। उन्हें कई दिन बाहर रहना होता था और यही ऐसा व्यंजन था जो कई दिनों तक टिकाऊ होता था।
जीआई टैग को भौगोलिक संकेत कहते हैं। यह एक ऐसा चिह्न या नाम है जो एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र के लोकप्रिय उत्पादों को पहचान देता है। जीआई टैग 10 साल के लिए मान्य होता है। जिन चीजों को जीआई टैग मिलता है, उन्हें उस भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोग ही अधिकृत रूप से निर्माण और बेच सकते हैं। यानी कि कोई दूसरा उसकी नकल नहीं कर सकता है।
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