नवरात्र में 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है। समस्तीपुर जिला के मणिपुर गांव में मां दुर्गा का एक अलौकिक मंदिर है। यह मैया स्थान के नाम से भी विख्यात है। यहां जो भी भक्त मुरादे लेकर आते हैं उनकी हर मुराद को मां पूरा करती है। खास करके नवरात्र के समय में सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बड़ी संख्या में महिलाएं यहां पूजा करने पहुंचती है और नारियल चढ़ाती हैं। मान्यता है कि इससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
इस मंदिर की ख्याति पूरे प्रदेश में है, श्रद्धालुओं के आस्था को देख पर्यटक विभाग ने इसे पर्यटन स्थल घोषित करने वाली सूची में शामिल किया हैं। जल्द ही यह पर्यटक स्थल के रूप में घोषित किया जाएगा. इस मंदिर के पीछे एक बड़ी कहानी है. लगभग 200 साल पहले इस गांव में हैजा महामारी फैल गई थी और प्रतिदिन सैकड़ो लोगों की मौत हो रही थी. उस समय तपस्वी सत्पुरुष श्री रामखेलावन दास को मां दुर्गा ने स्वप्न दिया कि तुम मुझे पिंडी के रूप में यहां पूजा करोगे तो मैं पूरे गांव के लोगों को मरने नहीं दूंगी।
रामखेलावन दास ने यह बात गांव के लोगों को बताई और सभी के द्वारा माता को पिंड के रूप में स्थापित कर पूजा पाठ शुरू की गई. धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई और आज तक कोई भी इस गांव में फ्लैग नामक से ग्रसित नहीं हुआ हैं और यह बीमारी समाप्त हो गई. गांव के लोग पिंड रूप में माता की पूजा अर्चना करने लगे. बताया जाता है कि 1936 में एक श्रद्धालु भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसने एक कट्ठा 18 धूर जमीन इस मंदिर को दान दे दी।
बताया जाता है कि जो लोग यहां पूजा अर्चना करने आते हैं और जो भी मुराद लेकर पहुंचते हैं उनकी मुराद यहां पूरी होती है. यहां के पुजारी विपिन झा ने बताया कि पहले तो मोबाइल और अन्य चीज नहीं थी लेकिन अब मोबाइल के कारण इस मंदिर के बारे में सभी लोगों को जानकारी मिल रही है. दूर-दूर से लोग आते हैं खास करके नवरात्र में लोग पूजा अर्चना करने आते हैं।
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