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राजीव कुमार की कहानी…खुद दारोगा न बन पाने की कसक ऐसी चुभी, 40 युवाओं को बनाया दारोगा

पूर्णिया: खुद के दारोगा बनने का सपना भले ही पूरा न हो सका, लेकिन अपनी अथक मेहनत के दम पर दर्जनों युवाओं को थानों की कमान दिलवा दी। आंधी, तूफान, बरसात हो चाहे चिलचिलाती धूप या फिर शीतलहर का मौसम। दर्जनों लड़के-लड़कियों को दारोगा बनता देखने के लिए रंगभूमि मैदान में हर दिन 18 घंटे की मेहनत कर रहे हैं राजीव कुमार। राजीव ने भी कुछ साल पहले दारोगा बनने का सपना देखा था। सालों जी तोड़ मेहनत भी की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद भी उन्होंने खुद को टूटने नहीं दिया। प्रण लिया कि हर साल सिपाही, दारोगा समेत डिफेंस के दूसरे क्षेत्र में जाने का सपना देखने वालों को तैयार करेंगे। बस तभी से यह सिलसिला चल पड़ा। उनके ट्रेंड किये दर्जनों युवा आज सूबे के अलग-अलग थाना में पदस्थ हैं।

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साल 2016 में खुद करते थे तैयारी
दरअसल, पूर्णिया जिले के कसबा निवासी राजीव कुमार ने साल 2016 से पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में दारोगा बनने की तैयारी शुरू की। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद भी उनका चयन नहीं हो पाया। साल 2018 से उन्होंने आर्थिक समस्या को चुनौती देते बच्चों को फिजिकल ट्रेंड करने का काम शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2019 में आधा दर्जन से अधिक छात्र दारोगा के रूप में चयनित हो गए। उनमें कई लड़कियां भी शामिल रहीं। इसके बाद कारवां बढ़ता गया और अब तक 40 से अधिक लड़के-लड़कियां दारोगा के रूप में चयनित होकर दारोगा बन गए हैं। इनमें 10 लड़कियां भी शामिल हैं। करीब 60 से अधिक संख्या में सिपाही की परीक्षा में भी बच्चे सफल हुए हैं।

सपने में भी नहीं सोचा था, सब इंस्पेक्टर बनूंगी 
मूल रूप से मुजफ्फरपुर की रहने वाली एक लड़की की शादी सहायक थाना क्षेत्र में हुई थी। दो बच्चों के बाद  पति से अनबन हो गई। माता-पिता और भाई के सहयोग और सलाह से वह दारोगा की तैयारी करने राजीव कुमार के पास पहुंच गईं। कई तरह की तकनीकी दिक्कत के बावजूद तैयारी पूरी की। अब वह कैमूर थाना में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं। बातचीत में महिला ने बताया कि पति से अनबन होने के बाद जीवन त्याग देने का मन हो रहा था। लेकिन राजीव सर के संपर्क में आकर उनके कठोर प्रशिक्षण से साल 2022 में सब इंस्पेक्टर की परीक्षा पास कर गई। सपने में भी नहीं सोचा था कि सब इंस्पेक्टर बन पाऊंगी। अब अधिक से अधिक महिलाओं की मदद करती हूं।

कड़ी धूप में दौड़ फिनिश तो टेस्ट में नहीं फेल
चिलचिलाती गर्मी में भले ही लोग बाहर निकलने से परहेज कर रहे हों। लेकिन इसी धूप में राजीव लड़के-लड़कियों को दौड़ने की प्रैक्टिस कराते हैं। वह कहते हैं कि अगर कोई इतनी तेज गर्मी में भी दौड़ने में सफल रहा तो फिर किसी भी परिस्थिति में वह सरकार द्वारा  निर्धारित समय सीमा में दौड़ पूरी कर सकते हैं। इस समय का बेसब्री से इंतजार रहता है।

पहले लोग चिढ़ाते थे, अब करते हैं सम्मान 
राजीव कुमार कहते हैं कि शुरुआती दौर में जब रंगभूमि मैदान में बच्चों को तैयारी कराने की हिम्मत की तो लोग चिढ़ाते थे। कहते थे कैसे खुले आसमान के नीचे पागलों जैसा कर रहा है। बाद में जब लगातार रिजल्ट आना शुरू हुआ तो लोगों के मुंह पर ताला लग गया। अब लोग सम्मान की नजरों से देखते हैं। सम्मान करते हैं। लड़कियां भी भयमुक्त होकर अलसुबह ही मैदान में प्रैक्टिस करने पहुंच जाती हैं। उनके अभिभावक भी विश्वास करते हैं। बच्चों के बीच रहते हुए 18 घंटे कैसे मैदान में ही बीत जाता है, पता नहीं चलता।

 

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