पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सीएम आवास पर कांग्रेस समेत देश भर के 15 भाजपा विरोधी विपक्षी दलों के 31 नेताओं की पहली औपचारिक बैठक खत्म हो गई है। बैठक लगभग पौने चार घंटे तक चली। बैठक में बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, झारखंड, पंजाब, दिल्ली, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में प्रभावी गैर कांग्रेस और गैर लेफ्ट पार्टियों के नेता भी शामिल हैं। लंच के बाद सब एकजुटता दिखाने के लिए मीडिया के सामने एक साथ आएंगे। मीटिंग में जो सहमति बनी और जो फैसला हुआ, ये नेता देश के सामने रखेंगे। आइए डालते हैं एक नजर उन सवालों पर जिनके जवाब का मीडिया को, बैठक में नहीं आई दूसरी भाजपा विरोधी पार्टियों को और भाजपा को भी बेसब्री से होगा।
सबसे बड़ा और सबसे पहला सवाल है कि बैठक के लिए 15 पार्टियों के ढाई दर्जन नेता पटना तो पहुंच गए लेकिन क्या बैठक खत्म होने के बाद वो साझा बयान या साझा संवाददाता सम्मेलन में हाथ से हाथ मिलाकर ये कहेंगे कि ये सारी पार्टियां 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर लड़ेंगी।
दूसरा सवाल है कि बैठक में शामिल 15 पार्टियों के नेता अगर 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने को तैयार हैं तो उनके गठबंधन का नाम क्या होगा। बिहार में महागठबंधन की सरकार चल रही है जिसमें अब 6 पार्टियां हैं। एक नाम तो ये हो सकता है। मनमोहन सिंह के जमाने से यूपीए अस्तित्व में है और आज भी कांग्रेस उसका नेतृत्व कर रही है।
नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल को छोड़ दें तो बाकी सारे नेताओं की पार्टी कभी ना कभी यूपीए का हिस्सा रही हैं। दूसरे नाम का विकल्प यूपीए है। तीसरा विकल्प ये हो सकता है कि लोकतंत्र बचाने के नाम से कोई नया गठबंधन बनाया जाए और यूपीए को शिथिल कर दिया जाए।
तीसरा सवाल है कि 15 पार्टियां अगर गठबंधन के लिए तैयार हैं तो उस गठबंधन का दूल्हा कौन होगा, नरेंद्र मोदी का जवाब कौन होगा। पीएम कैंडिडेट के सवाल से गठबंधन इस स्टेज पर बचेगा और सवाल को चुनाव तक के लिए टाल देगा। संयोजक की जरूरत गठबंधन के काम के लिए होगी ताकि कोई नेता सभी दलों से ताल-मेल रख सके। नीतीश का नाम संयोजक पद के लिए चर्चा में है और आसार हैं कि उन्हें सर्वसम्मति से कन्वेनर बनाया जाएगा। पीएम कैंडिडेट के सवाल को इस गठबंधन में चुनाव तक उठने नहीं दिया जाए, इस पर सहमति बनाई जाएगी।
नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता को ठोस रूप देने के लिए लोकसभा की 450 सीटों पर वन अगेंस्ट वन का फॉर्मूला दिया है। मतलब 450 सीटों पर बीजेपी या एनडीए कैंडिडेट के खिलाफ विपक्षी गठबंधन से कोई एक पार्टी ही कैंडिडेट दे। राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर जैसे राज्य हैं जहां कांग्रेस के एकतरफा दावे पर किसी को एतराज नहीं है। लेकिन यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्य भी हैं जहां कांग्रेस या तो कमजोर है या प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन में है। सूत्रों का कहना है कि मीटिंग की सूत्रधार जेडीयू ने इसके लिए पिछले तीन चुनाव में जीती सीट और वोट शेयर के आधार पर पर्सेंटाइल निकालकर सीट तय करने का मॉडल बनाया है। 1977 में जब जनता पार्टी में कई दलों का विलय हुआ था उनके बीच इसी फॉर्मूले से सीट बंटा था और तब कांग्रेस की हार हुई थी।
सीट शेयरिंग के लिए 15 पार्टियां तैयार हो जाती हैं तो फिर अगला सवाल उठता है कि कांग्रेस कितनी कुर्बानी देगी। उसके साथ यूपी, बंगाल, दिल्ली और पंजाब में क्या होगा जहां उसे सीट सपा के अखिलेश यादव, टीएमसी की ममता बनर्जी और आप के अरविंद केजरीवाल देंगे। बंगाल और यूपी में कांग्रेस को सरकार से गए दशकों बीत चुके हैं इसलिए वहां उसका हाथ नीचे है, ये उसे पता है। लेकिन आप ने तो पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को हराकर सरकार बनाई है। यहां किसका हाथ ऊपर होगा। इस सवाल का जवाब मीटिंग के बाद नहीं मिलेगा। इसका जवाब सीट बंटवारे के स्टेज पर मिलेगा।
ममता बनर्जी की सलाह पर विपक्षी एकता की पहली बैठक पटना में हो रही है। इसकी अगली बैठक कब और कहां होगी, ये अगला सवाल है। 9 महीने बाद लोकसभा चुनाव हैं इसलिए विपक्षी दलों को बार-बार और जल्दी-जल्दी मिलना होगा ताकि पार्टियों को पता रहे कि कौन किस सीट पर लड़ रहा है और वो पार्टी अपने कैंडिडेट को सिग्नल दे सके कि वो तैयार करें। सूत्रों का कहना है कि अगली मीटिंग सबकी सुविधा से दिल्ली या शिमला में हो सकती है। कांग्रेस पहली बैठक भी शिमला में करने कह रही थी। बैठक के बाद पीसी से साफ होगा कि आगे कब बैठक होगी, कहां होगी।
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