बेगूसराय के वीरपुर के सरौंजा गांव के पानी भरे गड्ढे में मछलियां कम, तैराक अधिक तैयार होते हैं। वह भी बिना किसी प्रशिक्षण, बिना किसी सरकारी सहयोग और बिना किसी प्रोत्साहन के। इस गांव ने राज्य को एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों तैराक दिए हैं, जिन्होंने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का परचम लहराया है।
सरौंजा वीरपुर प्रखंड की पर्रा पंचायत का एक पिछड़ा और सुविधाविहीन गांव है। गांव में कुरनमा गड्ढा है। इसे कुछ लोग नहर भी कहते हैं। इसी नहर में गांव के बच्चे नहाते हैं, मछलियां पकड़ते हैं और हाथ-पैर चलाते-चलाते तैराक बन जाते हैं। करीब एक दशक पहले गांव के कुछ बुद्धिजीवियों ने बच्चों की तैराकी प्रतिभा को देखा तो उसे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की सलाह दी। उन्हें पहले स्थानीय स्तर की तैराकी स्पर्द्धाओं में शामिल कराया। फिर राज्यस्तर पर उन्हें ले गए। उसके बाद तो इन तैराक बच्चों के पंख लग गए। मौका मिलता गया और वे राज्य स्तर से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाते चले गए।
दर्जनों तैराक राज्यस्तर पर लहरा रहे हैं परचम
गांव के दर्जनों तैराक राज्य स्तर पर परचम लहरा रहे हैं। बबलू कुमार साहनी, ललित कुमार,किरण कुमारी,सावित्री कुमारी,अशोक कुमार समेत दर्जनों तैराक राज्य स्तर पर कई मेडल जीत चुके हैं।
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