पटना सगुना मोड़ निवासी सीमा (बदला नाम) पेट दर्द से परेशान थीं। एम्स के स्त्री रोग विभाग में जांच के बाद गॉल ब्लाडर में पथरी निकली। डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी।
सभी जांच के बाद उन्हें ऑपरेशन के लिए तीन माह बाद का समय मिला। उस समय सीमा देवी के पेट में असहनीय पेट दर्द हो रहा था। उनके पति ने डॉक्टर से जल्द ऑपरेशन का आग्रह किया, लेकिन बात नहीं बनी। सीमा देवी का ऑपरेशन एक निजी अस्पताल में कराना पड़ा। जांच से जुड़ी डॉक्टर ने बताया कि सीमा से पहले कम से कम 60 महिलाएं सर्जरी की प्रतीक्षा कर रही हैं।
वैशाली की साधना देवी (बदला नाम) आंत के कैंसर से पीड़ित थीं। प्रारंभिक जांच के बाद ऑपरेशन की जरूरत बताई गई। लेकिन इसके लिए कैंसर सर्जरी विभाग से डेढ़ साल बाद का समय बताया गया। इसके बाद वे महावीर कैंसर संस्थान में इलाज कराने पहुंचीं। बक्सर का 22 वर्षीय अनुपम (बदला नाम) सिर दर्द से परेशान रहता था। न्यूरो सर्जरी विभाग में जांच में ब्रेन ट्यूमर का पता चला। उसका ऑपरेशन कराने की सलाह दी गई, लेकिन ऑपरेशन का समय एक साल बाद का मिल रहा था।
कैंसर मरीज को भी डेढ़ से दो साल बाद का मिल रहा समय
एम्स पटना में सर्जरी के लिए गंभीर मरीजों को भी जल्द समय नहीं मिल पा रहा है। मरीजों की ज्यादा भीड़ और चिकित्सक, बेड की कमी इसका बड़ा कारण बन गया है। कैंसर और ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित मरीज को भी ऑपरेशन के लिए डेढ़ से दो साल बाद का समय मिल रहा है।
गायनी विभाग की एक वरीय चिकित्सक ने बताया कि यहां विभाग में राज्यभर से गंभीर बीमारियों से पी’ड़ित मरीज पहुंचते हैं। उनमें से चार से पांच प्रतिशत को ऑपरेशन की जरूरत रहती है। उसकी तुलना में बेड, ओटी और डॉक्टर-नर्सिंग स्टाफ की कमी है। इस कारण मरीजों की प्रतिक्षा सूची लंबी है।
वहीं न्यूरो सर्जरी विभाग और कैंसर रोग विभाग में मरीजों को एक साल से दो साल बाद तक का समय मिल पा रहा है। कैंसर रोग और न्यूरो सर्जरी विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक प्रतिदिन औसत एक से दो ऑपरेशन ही हो पाते हैं। लेकिन सर्जरी लायक इन विभागों में 20 से 25 मरीज आते हैं। ऐसा ही हाल एमआरआई और सिटी स्कैन का है।
क्यों रहती है लंबी प्रतीक्षा सूची
एम्स पटना के न्यूरो सर्जरी और कैंसर सर्जरी विभाग एक सुपर स्पेशियलिटी सेंटर के रूप में कार्य कर रहा है। पिछले दो-तीन साल में कई दुर्लभ ऑपरेशन न्यूरो सर्जरी विभाग में हो चुके हैं। कुछ ऐसे उपकरण भी यहां मौजूद हैं जो देश के गिने-चुने संस्थानों में ही हैं। कैंसर सर्जरी में भी ऐसे सभी ऑपरेशन होते हैं जो देश के किसी अन्य संस्थान में हो सकते हैं। दूसरे टीएमएच मुंबई से भी बिहार के मरीजों को प्रारंभिक इलाज कर एम्स अथवा टीएमएच के क्षेत्रीय संस्थानों में भेज दिया जाता है। ऐसे में एम्स पटना में भीड़ बढ़ रही है।
संसाधन बढ़ेगा तो होगी आसानी
एम्स पटना के निदेशक प्रोफेसर डॉ. जीके पाल ने बताया कि एम्स पटना में जितने मरीज आ रहे हैं उनकी तुलना में फैकल्टी और नर्सिंग स्टाफ, बेड व अन्य संसाधनों की घोर कमी है। संसाधनों को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। 173 पदों पर फैकल्टी की बहाली के लिए विज्ञापन भी निकाला गया है। इसके अलावा अस्पताल की क्षमता बढ़ाने के लिए स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी की बैठक में प्रस्ताव रखा जाएगा। इसमें अलग से सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक स्वीकृत कराने का प्रयास होगा। इसके अलावा 200 नर्सों की बहाली के लिए एम्स नई दिल्ली को भी आग्रह भेज दिया गया है।
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