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पहली बार सि’र्फ 7 दिन CM रहे नीतीश कुमार ने 7वीं बार ली मुख्य’मंत्री पद की शपथ, ऐसा है इंजी’नियर से ‘सुशा’सन बाबू’ तक का सफ’र

नीतीश कुमार ने सात’वीं बार बिहार के मुख्य’मंत्री पद की शपथ ले ली है। पहली सर’कार केवल सात दिन तक चला सकने वाले नीतीश कुमार लगाता’र डेढ़ दशक से बिहार की सत्ता संभाले हुए हैं और कभी बीमारू राज्यों में गिने जाने वाले सूबे में ‘सु’शासन बाबू’ के नाम से भी प्रचलित हैं। इंजीनि’यरिंग की पढ़ाई करने वाले नीतीश की राजनी’ति के माहिर खिलाड़ी हैं और सही समय पर दोस्त को दुश्मन और दुश्’मन को दोस्त बनाना भी बखू’बी जानते हैं। तीन साल शासन के बाद वह बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्य’मंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर सकते हैं।

 

भले ही इस बार चु’नाव में जेडीयू का प्रद’र्शन पहले जैसा नहीं रहा और उसे पिछली बार 2015 वि’धानसभा चुनाव में मिली 71 सीटों के मुका’बले इस बार मात्र 43 सीटें मिलीं हैं, लेकिन सियासी वक्त की नजा’कत को समझने वाले नीतीश कुमार इस बार भी मुख्’यमंत्री बने रहने में काम’याब रहे। मंडल की राज’नीति से नेता बनकर उभरे नीतीश कुमार को बिहार को अच्छा शासन मुहैया कराने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन उनके वि’रोधी उन पर अवसर’वादी होने का आरोप लगाते रहे हैं।

 

भले ही इसे राजनीतिक अवसर’वादिता कहा जाए या उनकी बुद्धि’मत्ता, राज’नीतिक शतरंज की बिसात पर नीतीश की चालों ने वर्षों से सत्ता पर उनका दब’दबा बनाए रखा है। कोई भी राजनी’तिक चाल चलने से पहले अपने सभी वि’कल्पों पर अच्छी तरह सोच-विचार करने के लिए जाने-जाने वाले कुमार कभी लहरों के विरुद्ध जाने से संकोच नहीं करते। जेपी आं’दोलन में सक्रिय भूमि’का निभाने वाले युवा नीतीश ने राज्य विद्युत विभाग में नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और राज’नीति में जुआ खेलने का फैसला किया। बिहार के किसी शिक्षित युवा के लिए ‘सरका’री नौकरी ठुकराकर’ राजनीति में भाग्य आजमाने का फैसला करना बड़ी बात है।

 

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में अपने साथ राजनीति में कदम रखने वाले लालू प्रसाद और राम विलास पासवान के विपरीत कुमार को लंबे समय तक चुनाव में जीत नहीं मिली। उन्हें 1985 के वि’धानसभा चुनाव में लोक दल के उम्मी’दवार के तौर पर हरनौत विधान’सभा सीट से पहली बार सफ’लता मिली, हालांकि उस चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया था। यह चुनाव इंदिरा गांधीन’गर की हत्या के कुछ महीने बाद हुआ था।

 

पहली चुना’वी जीत के चार साल बाद वह बाढ़ लोकस’भा क्षेत्र से निर्वाचि’त हुए। यह वही दौर था जब सारण से लोकस’भा सदस्य रहे लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त जनता दल के भीतर मुख्यमं’त्री के लिए नीतीश ने लालू का सम’र्थन किया था। इसके बाद कुछ वर्षों में लालू प्रसाद बिहार की राजनीति में सबसे ताक’तवर नेता के तौर पर उभरे, हालांकि बाद में चारा घोटाले में नाम आने और फिर पत्नी राबड़ी देवी को मुख्य’मंत्री बनाने के बाद वह विवादों से घिरते चले गए।

 

नीतीश ने भी 1990 के दश’क के मध्य में ही जनता दल और लालू से अपनी राह अलग कर ली तथा बड़े समाज’वादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के साथ सम’ता पार्टी का गठन किया। उनकी समता पार्टी ने भाज’पा के साथ गठबंधन किया और नीतीश ने एक बेहत’रीन सांसद के रूप में अपनी पहचान बनाई तथा अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमं’डल में बेहद ही काबिल मंत्री के तौर पर छाप छोड़ी।

 

बाद में लालू प्रसाद और शरद यादव के बीच विवा’द हुआ। यादव ने अपनी अलग राह पकड़ ली। इसके बाद सम’ता पार्टी का जनता दल के शरद यादव के धड़े में विलय हुआ जिसके बाद जनता दल (यूनाइटेड) वजूद में आया। जद(यू) का भाजपा का गठ’बंधन जारी रहा। साल 2005 की शुरुआत में हुए विधा’नसभा चुनाव में भाजपा-जद (यू) के गठबंधन वाला राजग कुछ सीटों के अंतर से बहुमत के आंकड़े दूर रह गया जिसके बाद राज्य’पाल बूटा सिंह ने विधा’नसभा भंग करने की सिफारिश की जिसको लेकर विवाद भी हुआ। उस वक्त केंद्र में संप्रग की सरकार थी।

 

इसके कुछ महीने बाद हुए विधा’नसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की बिहार में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और यहीं से बिहार की राज’नीति में तथाक’थित ‘लालू युग के पटाक्षेप की शुरुआत हुई। सत्ता में आने के बाद नीतीश ने नए सामा’जिक समीक’रण बनाने हुए पिछड़े वर्ग में अति पिछड़ा और दलित में महा’दिलत के कोटे की व्यवस्था की।

 

इसके साथ ही उन्होंने स्कूली बच्चियों के लिए मुफ्त साइ’किल और यूनीफार्म जैसे कदम उठाए और 2010 के चुनाव में उनकी अ’गुवाई में भाजपा-जद(यू) गठबंधन को एक’तरफा जीत मिली। इसके बाद भाजपा में ‘अटल-आडवाणी युग खत्म हुआ और नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राज’नीति के क्षितिज पर आए तो नीतीश ने 2013 में भाज’पा से वर्षों पुराना रिश्ता तोड़ लिया।

 

वर्ष 2014 के लो’कसभा चुनाव में जद(यू) को बड़ी हार का सा’मना करना पड़ा और भाज’पा ने बिहार से बड़ी जीत हासिल की। नीतीश ने नैतिक जिम्मे’दारी लेते हुए मुख्यमं’त्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को मुख्य’मंत्री बनाया। करीब एक साल के भीतर ही मांझी का बागी रुख देख नीतीश ने फिर से मुख्य’मंत्री की कमान संभाली। 2015 के चुनाव में वह राजद और कांग्रेस के साथ मिल’कर चुनाव लड़े और इस महाग’ठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई।

 

नीतीश ने अपनी सर’कार में उप मुख्य’मंत्री एवं राजद नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टा’चार के आरोप लगने के बाद मुख्यमं’त्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि कुछ घंटों के भीतर ही भाजपा के सम’र्थन से एक बार फिर बिहार के मुख्य’मंत्री बने। उन्हें नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक चुनौ’ती के तौर पर देखने वाले लोगों ने नीतीश के इस कदम को जना’देश के साथ विश्वास’घात करार दिया। हालांकि, वह बार-बार यही कहते रहे कि मैं भ्र’ष्टाचार से सम’झौता कभी नहीं करूंगा।

 

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौ’रान ही वह राजनी’ति में अपनी पैठ बना चुके थे। संसदीय राज’नीति की शुरुआ’त उन्होंने लालू प्रसाद के साथ रहकर शुरू की। मगर वर्ष 2009 के चुनाव में वह भा’जपा के साथ हो गए। इस बार फिर भाज’पा का साथ उनको मिला है। बीच में 2014 में उनकी अपनी पार्टी जदयू अकेले चुना’व लड़ी। तब मात्र दो सीटों पर उनके उम्मीद’वार जीत सके थे। इसके पहले विधा’नसभा का चुनाव वह दो बार भाजपा के साथ रहकर जीते और राज्य में सरकार बनाई। तीसरी बार उन्होंने विधा’नसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी का साथ ले लिया, लेकिन लगभ’ग डेढ़ साल के बाद ही उनका मोह भंग हो गया।

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