पटना: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बिहार में विशेष राज्य देने की मांग एक बार फिर से उठ चुकी हैं। बिहार के तकरीबन सभी दल विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं. सत्ताधारी महागठबंधन दलों के नेताओं ने इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो इसके लिए बकायदा आंदोलन चलाने की अपील की है।
वहीं विपक्षी नेता इस मांग का समर्थन जरूर कर रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार और लालू यादव पर सवाल भी खड़ कर रहे हैं. अब सवाल ये है कि आखिर हर लोकसभा चुनाव के पहले विशेष राज्य का दर्जा वाली मांग क्यों शुरू हो जाती है?
बता दें कि भारत के संविधान में विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान नहीं है. इसके बाद भी केंद्र सरकार की ओर से समग्र विकास में पिछड़ चुके राज्यों को विशेष श्रेणी में रखा जाता है. केंद्र की ओर से ऐसे राज्यों को विकास के लिए विशेष सहायता राशि दी जाती है।
विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से 90 फीसदी अनुदान मिलता है. इसका मतलब केंद्र सरकार से जो फंडिंग की जाती है उसमें 90 फीसदी अनुदान के तौर पर मिलती है और बाकी 10 फीसदी रकम बिना किसी ब्याज के मिलती है. जिन राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है उन्हें केवल 30 फीसदी राशि अनुदान के रूप में मिलती है और 70 फीसदी रकम उनपर केंद्र का कर्ज होता है।
बिहार को क्यों चाहिए विशेष राज्य का दर्जा?
अब सवाल ये उठता है कि आखिर बिहार को किस बुनियाद पर विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. इस पर सत्ताधारी दल जदयू और राजद का कहना है कि बिहार से झारखंड अलग होने के बाद राज्य का विकास रुक गया. उनकी दलील है कि जब राज्य बंटा तो आबादी का 65 फीसदी हिस्सा बिहार को मिला और मात्र 35 फीसदी हिस्सा झारखंड में गया, लेकिन आय का स्रोत का 67 फीसदी हिस्सा झारखंड में चला गया।
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