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विद्यापति धाम: जिद पर अड़े विद्यापति तो धारा बदल पहुंची मां गंगा, भगवान के साथ भक्त की होती है पूजा

भारत में कई ऐसे जगह हैं जहां भक्त को भगवान ने प्रकट होकर दर्शन दिया है। जगह-जगह ऐसे स्थल साक्ष्य के रूप में विद्यमान हैं। ये जगह लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं। चाहे वो श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या हो या फिर श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा। ऐसा ही एक स्थल है बिहार के समस्तीपुर जिले का विद्यापतिधाम। इसे भक्त और भगवान का मिलन स्थल माना जाता है। यहां भगवान शिव व भक्त कवि विद्यापति की पूजा एक साथ होती है। भगवान शिव का यह मंदिर हजारों-लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। लोग मानते हैं एक बार जो यहां सच्चे मन से याचना कर ले भोलेनाथ उसकी मन्नत जरूर पूरी करते हैं। ऐसी लोगों की आस्था है।

Hindustan Special:  जिद पर अड़े विद्यापति तो धारा बदल पहुंचीं मां गंगा, भगवान के साथ भक्त की होती है पूजा

यह मंदिर सड़क व रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। बिहार की राजधानी पटना से भी यह सड़क मार्ग से काफी करीब है। रेलवे स्टेशन मंदिर परिसर के ठीक सटे है। स्टेशन का नाम भी मंदिर के नाम पर ‘विद्यापति धाम’ है। हाजीपुर-बरौनी रेल रूट पर यह छोटा सा स्टेशन है। इस रूट में चलने वाली पैसेंजर ट्रेनें यहां रूकती हैं।

भगवान भोलेनाथ व कवि विद्यापति का यह स्थल आपको काफी आकर्षित करेगा। यही वह स्थल है जहां मां गंगा ने अपनी धारा बदल कर यहां अचेत पड़े कवि विद्यापति को दर्शन दिया था, उन्हें अपने साथ ले गई थीं। यह कथा पूरे मिथिलांचल में प्रचलित है। कई विद्वानों ने ऐसा लिखा है, उल्लेख किया है। मिथिलांचल वर्तमान में दरभंगा, मुधबनी, समस्तीपुर व सहरसा जिला, जहां मैथिली बोली जाती है को माना जाता है। एनएच-28 से दलसिंहसराय पहुंचकर आप दाहिने विद्यापतिनगर प्रखंड की ओर हो जाइए। करीब 10 किमी चलने के बाद रेल लाइन पार करते हीं आपको मंदिर का प्रवेश द्वार दिख जाएगा। यही सड़क मोहिउद्दीननगर-महनार होते हुए हाजीपुर फिर पटना को जाती है।

विद्यापति धाम, समस्तीपुर : एतय एक संग पूजल जाइत अछि भक्त आ भगवान | Vidyapati  Dham, Samastipur - मिथिला धरोहर | Maithili Panchang, Gonu Jha Stories,  Maithili Song Lyrics, Biography & Many More.

मंदिर के आसपास बहुत बड़ी आबादी नहीं हैं। छोटा सा बाजार है जहां थोड़ी बहुत जरूरत का सामान मिल जाता है। बड़ी खरीदारी के लिए लोग दलसिंहसराय ही आते हैं। दलसिंहसराय विद्यापतिनगर का अनुमंडल है। मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए अच्छी व्यवस्था है। सावन महीने में यहां एक महीने तक श्रावणी मेला चलता है। इस दौरान श्रद्धालु पास के झमटिया से गंगाजल लेकर पैदल बाबा पर जलाभिषेक करते हैं। मंदिर की दीवारों पर मंदिर के उद्गम, यहां के शिवलिंग मिलने की कहानी उकेरी गई है।

भोलेनाथ ने दिया था दर्शन  

यह स्थल भक्त और भगवान के मिलन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने विद्यापति को उगना (विद्यापति के नौकर का नाम) रूप में दर्शन दिया था, उनके साथ रहकर उनकी सेवा की थी। धार्मिक किताबों में इसका उल्लेख मिलता है। एक कथा यह भी है कि अपने अंतिम समय में विद्यापति यहां गंगा की साधना में जुट गए। वे जिद पर अड़ गए। कहा जाता है कि मां गांगा अपनी धारा बदलकर यहां आयीं थी और विद्यापति को साथ ले गईं। यहां से छह किमी पर गंगा का चमथा (बेगूसराय) घाट है। जिस रास्ते से गंगा यहां आयी थीं, वह पूरा इलाका रौताधार के रूप में जाना जाता है। विद्यापति की निम्न पंक्तियों में गंगा के प्रति उनका भाव देखा जा सकता है…

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कौन हैं कवि विद्यापति

विद्यापति भारतीय साहित्य की ‘शृंगार-परम्परा’ के साथ-साथ’ भक्ति-परम्परा’ के प्रमुख कवि के साथ मैथिली के सर्वोपरि कवि हैं। उनका जन्म बिहार के जिला मधुबनी के बिस्फी में माना जा जाता है। इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। इन्हें वैष्णव, शैव और शाक्त भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला के लोगों को ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का सूत्र दे कर इन्होंने उत्तर-बिहार में लोकभाषा की जनचेतना को जीवित किया है। मिथिलांचल के लोकव्यवहार में प्रयोग किये जानेवाले गीतों में आज भी विद्यापति की शृंगार और भक्ति-रस में पगी रचनाएँ जीवित हैं। पदावली और कीर्तिलता इनकी अमर रचनाएं हैं।

कब जाएं

1950 से विद्यापति परिषद ने भक्त कवि विद्यापति की स्मृति में कार्तिक माह धवल त्रयोदशी (समाधि लेने का दिन) समारोह मनाना शुरू किया। वर्ष 2013 में बिहार सरकार की ओर से राजकीय महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। यूं तो यहां सालों भर श्रद्धालु उमड़ते हैं। सावन में एक महीने का मेला लगता है। महोत्सव के दौरान भी खूब भीड़ रहती है।

 

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