नवादा: लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मभूमि सिताब दियारा की तरह ही उनकी कर्मस्थली नवादा के कौआकोल का सोखोदेवरा आश्रम की चर्चा सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। आज भी विदेशी शोधार्थी उनकी इस कर्मस्थली को देखने आते हैं, लेकिन आज भी इस कर्मस्थली का विकास नहीं हो सका। 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां पर जेपी की प्रतिमा अनावरण कर आश्रम को विकसित करने का आदेश भी दिया था। 16 करोड़ रुपये की डीपीआर भी बनी, लेकिन आज तक जमीन पर नहीं उतर सकी।
1954 में हजारीबाग जेल से भागने के बाद जयप्रकाश नारायण ने कौआकोल के सोखोदेवरा के पास पहाड़ी से सटे जंगल में एक कुटिया बनाई। स्थानीय लोगों को इकट्ठा कर उनमें देश सेवा व क्रांति का पाठ पढ़ाने का काम शुरू किया। यहीं विदेशियों से संघर्ष करने की योजनाएं बनाई गईं। जेपी ने इस इलाके को अपने कर्मों की बदौलत ग्राम निर्माण मंडल का रूप दे दिया, जिसके कारण आज भी सोखोदेवरा की चर्चा होती है।
लोक समिति का गठन कर उठाया था जोश भरने का बीड़ा
जेपी ने लोक समिति का गठन कर सात लाख लोगों को सेवक बनाकर उनमें भारतीय होने का जोश भरने का काम किया था। 1977 में उन्होंने इन्हीं लोक सेवकों के साथ मिलकर विदेशियों से लोहा लेने का काम किया। लोगों के सहयोग से ग्राम निर्माण मंडल की स्थापना कर नए गांवों का भी निर्माण करने का काम किया था। जो आज प्रभानगर, जयप्रकाश नगर आदि के नाम से जाने जाते हैं। इन गांव के लोगों को स्वरोजगार मुहैया कराने के लिए चरखा का इंतजाम कर उन्हें सूत काटने का प्रशिक्षण देकर उन्होंने स्वाबलंबी भी बनाया था। गो पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, साबुन बनाने आदि तरह-तरह के स्वरोजगारपरक इकाइयों की स्थापना कर लोगों को आय सृजन से उन्होंने जोड़ा था। उनके ही अथक प्रयास से सोखोदेवरा ग्राम निर्माण मंडल परिसर में कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की गयी। उन्होंने क्षेत्र के लोगों को जागरूक एवं खेती-बाड़ी के लिए प्रेरित करते हुए जंगल के किनारे परती पड़ी उबड़-खाबड़ भूमि को अपनी मेहनत की बदौलत समतलीकरण किया। कई कचरे कुओं का निर्माण कर किसानों को सिंचाई का साधन भी देने का काम किया था।
आज भी मौजूद है जेपी का अवंतिका बाग
जेपी का अवंतिका बाग आज भी उनकी कर्मस्थली सोखोदेवरा के आश्रम परिसर में मौजूद है। जेपी ने खुद बहंगी से पानी ढोकर उसमें लगे पेड़ पौधों को सींचने का काम किया करते थे। उन्होंने शौक से इस बगीचे को अपनी ही हाथों से लगाया था। जहां वे प्रतिदिन अपने साथियों के साथ बैठा करते थे। इतना ही नहीं आज भी यहां जेपी के हाथों खुद से निर्माण किए गए मिट्टी के भवन मौजूद हैं। जेपी ने इस मकसद से इन भवनों का निर्माण किया था ताकि लोग खुद ही स्वाबलंबी बन सकें।
1954 से 1979 तक लगातार की कौआकोल की सेवा
जेपी ने कौआकोल से ही ग्राम स्वराज का नारा देकर लगातार 1954 से 1979 तक यहां के लोगों के साथ रहते हुए लोक समिति के प्रति संकल्पित रहने का काम किया था। जेपी ने जीविका के क्षेत्र में भी बहुमूल्य काम किया था। जेपी का नारा था कि हर हाथ को मिले काम तथा हर इंसान का हो सम्मान। तब ही देश एवं समाज खुशहाल बन सकता है।
खादी विद्यालय की स्थापना की
जेपी का उद्देश्य था कि हर हाथ को काम और हर इंसान को सम्मान देकर लोगों में खादी की एक नई क्रांति पैदा कर युवाओं को संगठित करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने अपनी कर्मस्थली सोखोदेवरा आश्रम में एक खादी विद्यालय की स्थापना की थी। यहां खादी कार्यकर्ताओं को तैयार करने का काम किया जाता था। यह विद्यालय बिहार प्रदेश का अकेला विद्यालय था, जहां खादी कार्यकर्ताओं को सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण देने का काम किया जाता था, लेकिन सरकार के उदासीन रवैये के कारण यह विद्यालय 2003 से ही बंद पड़ा है। सरकारी ढुलमुल वाली नीति के कारण जेपी का ग्राम स्वराज का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है।
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