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“आनंद मोहन को जिंदा जेल से बाहर नहीं आना चाहिए था” सुप्रीम कोर्ट में जी कृष्णैया की बीवी की दलील

पटना: बिहार के पुराने बाहुबली नेता आनंद मोहन की 1994 के डीएम जी कृष्णैया ह’त्याकांड में जेल से रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दिवंगत डीएम की पत्नी उमा कृष्णैया ने कहा है कि कानूनन और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के मुताबिक आनंद मोहन को जेल से जिंदा नहीं निकलना चाहिए था। दिवंगत डीएम की पत्नी ने अपनी याचिका में दलील दी है कि आनंद मोहन को पहले फांसी हुई थी जिसे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदला इसलिए आजीवन उन्हें जेल में रहना चाहिए था और मौ’त के बाद ही उनका श’व जेल से बाहर आना चाहिए था।

Anand Mohan should have been in jail for his entire life pleads slain DM G  Krishnaiah wife in Supreme Court challenging early release - आनंद मोहन को जिंदा  जेल से बाहर नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया है। कोर्ट अब तीनों पक्षों का इस मामले पर जवाब आने के बाद आगे सुनवाई करेगा लेकिन उमा कृष्णैया के तेवर और उनकी दलील आनंद मोहन की चिंता बढ़ाने वाली हैं।  याचिका में कहा गया है कि जिस केस में आ’रोपी को फां’सी की सजा मिले और उसे ऊपरी अदालत उम्रकैद में बदल भी दे तो उसे 14 साल या 20 साल नहीं बल्कि अपनी बची हुई जिंदगी जेल में बितानी चाहिए। इस केस में आनंद मोहन को 2007 में फां’सी की सजा हुई थी। पटना हाईकोर्ट ने 2008 में मृ’त्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया। आनंद मोहन ने इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन कोर्ट ने 2012 में जब फैसला दिया तो आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी।

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि जिस तारीख को सजा हुई उस तारीख को लागू जेल मैनुअल के हिसाब से रिहाई होगी। 2007 में बिहार में जो जेल मैनुअल लागू था वो 2002 में बनाया गया था। इसके हिसाब से सरकारी कर्मचारी की ह’त्या के मामले में अगर आजीवन कारावास की सजा हुई हो तो उस कैदी को 20 साल की सजा पूरी करने के बाद ही छोड़ा जा सकता था।

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 10 अप्रैल को इस नियम को बदल दिया। याचिका में दावा किया गया है कि इस बदलाव का लाभ रिहा हुए 27 कैदियों में सिर्फ आनंद मोहन को मिला क्योंकि यह चेंज सिर्फ आनंद मोहन के लिए किया गया था। आनंद मोहन 27 अप्रैल को सहरसा की जेल से सुबह होने से पहले रिहा हो गए थे और तब से सार्वजनिक रूप से कहीं नजर नहीं आए हैं। 3 मई को उनके विधायक बेटे चेतन आनंद की शादी थी जो जयपुर में संपन्न हो गई है।

याचिका में उमा कृष्णैया ने कहा है कि जब फां’सी के विकल्प के तौर पर उम्रकैद की सजा दी जाती है तो उसे पूरी तरह उम्रकैद की तरह लिया जाता है। उसमें 14 साल या 20 साल के बाद रिहाई नहीं होती है। याचिका में साल 2000 के लक्ष्मण नास्कर केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की नजीर दी गई है जिसमें कहा गया था कि आ’रोपी के पुराने आप’राधिक रिकॉर्ड, सामाजिक कद और भविष्य में क्राइम करने की संभावना पर विचार करके ही रिहाई पर फैसला करना चाहिए।

याचिका में आनंद मोहन के प्राइवेट कार से पेशी पर जाने और सरकारी सर्किट हाउस में रुकने की घट’नाओं का भी जिक्र किया गया है जिससे बताया जा सके कि उनका सूख कितना है। याचिका में लक्ष्मण नासकर केस में समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय गाइडलाइंस का हवाला देते हुए आनंद मोहन की रिहाई को रद्द करके वापस जेल भेजने की मांग की गई है।

 

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