जहानाबाद: जहानाबाद में चौकाने वाला एक खुलासा हुआ है. यहां परसबिगहा थाने की पुलिस द्वारा जिंदा अभियुक्त को मृ’त बताकर कोर्ट को गुमराह करने का मामला प्रकाश में आया है. मामले का खुलासा तब हुआ जब मु’र्दा घोषित किए गए अभियुक्त ने न्यायालय में सरेंडर कर खुद को जिंदा बताया. जिसे देख जज भी हैरान हो गए. दरअसल परस बिगहा थाना में पंडुई-बेलदारी बिगहा गांव निवासी अनिल बिंद के खिलाफ वर्ष 2013 में मा’रपीट का एक कांड दर्ज किया गया था. इस मामले में तत्कालीन मुखिया रामप्रवेश कुमार ने अपने पैड पर लिख कर दिया था कि अनिल बिंद की मृ’त्यु 10 अगस्त 2019 को हो गई है. मुखिया ने अपने पैड पर यह भी लिखा है कि वे अनिल बिंद को अच्छी तरह से जानते और पहचानते हैं.
जिंदा व्यक्ति को बताया मृत
मुखिया के पैड पर लिखे प्रमाण पत्र को थाना प्रभारी ने सही मानते हुए अनिल बिंद को मृ’त मानते हुए कोर्ट को सूचित कर दिया. जबकि मुखिया के द्वारा जारी मृ’त्यु प्रमाण पत्र को वैधानिक मान्यता नहीं है. मृ’त्यु प्रमाण पत्र के लिए पंचायत सचिव को रजिस्ट्रार का अधिकार दिया गया है. न्यायालय ने थाना प्रभारी की रिपोर्ट पर कार्रवाई प्रारंभ कर दिया, तभी 21 फरवरी को अनिल बिंद ने सह अभियुक्तों के साथ आत्मसमर्पण कर अपने को जिंदा बताया. जिसे देख जज भी हैरान हो गए. इस संबंध में पुलिस अधिकारी ने तत्कालीन थानाध्यक्ष और मुखिया पर लापरवाही का आरोप लगाया है. तत्कालीन मुखिया की माने तो अनिल बिंद की मां की मृ’त्यु हो गई थी. भूलवश अनिल बिंद के बारे में लिख दिया था. फिलहाल पूरे मामले की जांच पड़ताल की जा रही है.
कोर्ट में सरेंडर कर दिया जीवित होने का सबूत
वहीं अनिल बिंद ने बताया कि उसे इस मामले में कोई जानकारी नहीं थी. इधर न्यायिक दंडाधिकारी आलोक कुमार चतुर्वेदी की न्यायालय ने इस मामले में परसबिगहा थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष धीरेंद्र कुमार सिंह एवं तत्कालीन मुखिया रामप्रवेश कुमार की भूमिका को संदिग्ध तथा अभियुक्त को लाभ दिलाने वाला माना है. न्यायालय ने कार्यालय लिपिक ने निर्देश दिया है कि तत्कालीन थाना प्रभारी और मुखिया पर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत क्रिमिनल केस चलाएं. न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि दोनों 13 मार्च को न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें कि क्यों नहीं उन्हें इस मामले में दंडित किया जाए.
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