बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीति कारगर साबित होती नहीं दिख रही है। पिछले साल एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बनाने वाले सीएम नीतीश ने जो देश भर के विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम शुरू की, वो फिलहाल ठंडे बस्ते में है। दूसरी ओर, उनकी खुद की पार्टी बिखरने लगी है। कुर्मी-कोइरी समाज के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू छोड़कर चले गए हैं और नई पार्टी बना ली है। आगामी लोकसभा चुनाव में कुशवाहा के एनडीए के साथ जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है नीतीश कुमार की 2024 की रणनीति में कहां चूक हो रही है?
हाल ही में उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार और जेडीयू के शीर्ष नेताओं पर कई आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से नई पार्टी बनाने का ऐलान किया। अब अगले चुनाव में एनडीए के साथ जाकर नीतीश के खिलाफ लड़ेंगे। इस तरह नीतीश का लव-कुश वोटबैंक बिखरेगा और एनडीए को इसका फायदा होगा। जेडीयू में इसे बड़ी टूट माना जा रहा है। हालांकि, पार्टी नेताओं का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा के आने से जेडीयू को कोई फायदा नहीं हुआ था। सीएम नीतीश कुमार ने भी कहा कि कुशवाहा चले गए, तो ठीक ही हुआ।
नीतीश की विपक्षी एकता की मुहिम ठंडे बस्ते में
अगस्त 2022 में महागठबंधन के साथ बिहार में सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने 2024 चुनाव से पहले देश भर के विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम शुरू की थी। इसके तहत उन्होंने केसीआर, अरविंद केजरीवाल, सोनिया गांधी, शरद पवार जैसे कई नेताओं से मुलाकात की थी। हालांकि, उनकी मेहनत कोई रंग नहीं ला पाई और सभी दलों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते यह मुहिम ठंडे बस्ते में चली गई।
पीएम कैंडिडेट को लेकर कांग्रेस से गतिरोध
जेडीयू और आरजेडी नीतीश कुमार को 2024 में विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। इसे लेकर देश भर के विपक्षी दलों की तो छोड़िए, बिहार के महागठबंधन में भी एकराय नहीं है। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस नीतीश को पीएम कैंडिडेट मानने से इनकार कर रही है। कांग्रेस राहुल गांधी को ही इस पद के उपयुक्त मानती है। पार्टी नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं, वे ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूत दावेदार हो सकते हैं।
नीतीश कुमार ने पिछले साल बीजेपी पर जेडीयू को खत्म करने का आरोप लगाते हुए एनडीए छोड़ा था। मगर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश को देश का नेतृत्व करने की इच्छा है और यह एनडीए में रहते हुए संभव नहीं हो पाता। इसलिए उन्होंने बीजेपी नीत गठबंधन छोड़ दिया और कांग्रेस एवं आरजेडी से हाथ मिला लिया। फिर नीतीश ने खुद के राष्ट्रीय राजनीति में जाने का ऐलान करते हुए तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इससे जेडीयू के साथ-साथ आरजेडी भी उन्हें पीएम कैंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट करने लगी।
हालांकि, देश भर के विपक्षी दलों को एकजुट करने में अब तक नीतीश कामयाब नहीं हो पाए हैं। वे बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी में कांग्रेस को साथ रखना चाहते हैं। मगर AAP, बीआरएस, सपा, बसपा और टीएमसी जैसी पार्टियां इससे सहमत नहीं हैं। साथ ही नीतीश कुमार के अलावा राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और केसीआर जैसे अन्य नेता भी हैं, जिनकी पार्टियां उन्हें पीएम पद का दावेदार बता रही हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर विपक्षी दलों में एकराय बनना कठिन है और नीतीश कुमार यहीं पर मात खाते नजर आ रहे हैं।
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