सहरसा: प्रखण्ड के महपुरा गांव में कोसी नदी के किनारे बाबाकारू खिरहर का मंदिर अवस्थित है, जहां नवरात्र के महासप्तमी को दूध की धारा बहने लगती है। सनातन इतिहास कहता है कि 17वीं शताब्दी में सहरसा जिले के महपुरा गांव के एक यादव परिवार में कुलदेवी मां दुर्गा के कृपा से एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम उसके माता पिता ने कारू रखा।
स्थानीय लोगों के अनुसार बाबा कारू खिरहर भगवान श्री कृष्ण के वंशज थे, जो मथुरा से बिहार आ गए थे। बालक कारू खिरहर बचपन से ही बड़े बलवान और युद्ध कला में निपुण थे। चारों वेद और पुराणों का उन्हे पूरा ज्ञान था। उन्हें गौ माता और महादेव से अत्यंत प्रेम था। दिन रात बाबा गौ माता की सेवा करने में और महादेव की पूजा अर्चना में उनका जीवन बीतता था।
बाबा कारू खिरहर ने कई वर्षों तक नाकुच स्थित बाबा नकुचेश्वर महादेव की आराधना की तथा अपनी भक्ति से महादेव के साक्षात का वरदान प्राप्त किया। जगत के कल्याण के लिए गौ रक्षा का वरदान मांगा। कुछ ही दिनों में बाबा के चमत्कार के किस्से पूरे मिथिला क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गया।
बाबा महादेव और कुलदेवी मां गहिल भवानी के भक्ति के कारण कुछ ही दिन में बाबा एक महान सत्यवान और सिद्ध पुरुष बन गए थे। बाबा कारू के वीरता और चमत्कार की सैकड़ों कहानियां कही जाती है। आज भी इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों किलो दूध चढ़ाया जाता है।
दशहरा के महासप्तमी को चढ़ता सैकड़ों क्विंटल दूध: नवरात्रा के महासप्तमी को कारुस्थान में भव्य मेला का आयोजन होता है। यूं तो कारुस्थान में प्रतिदिन दुग्धाभिषेक होता है, लेकिन महासप्तमी के दिन इतना दूध चढ़ता है कि कोसी नदी में दूध की धारा बह जाती है।
ऐसी मान्यता है कि बाबा कारू का भभूत लगाने से बीमार मनुष्य और पशु ठीक हो जाता है। भक्तों द्वारा बाबा को दूध, भांग, लठ, गांजा, खड़ाऊ, अरबा चावल, मिठाई व नकदी का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। यहां का मुख्य प्रसाद खीर है जो श्रद्धालु द्वारा चढ़ाए दूध से ही बनता है। महासप्तमी को खीर का महाप्रसाद का वितरण किया जाता है।
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