बगहा के रामनगर प्रखंड का दोन इलाका घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी में बसा है। यहां पर दो पंचायतें हैं। दोनों पंचायतों में 26 गांव बसते हैं। इनकी कुल आबादी 40 हजार के आसपास है।
वैसे तो यहां के लोग हर साल बाढ़ का सामना करते हैं। इसके लिए अभ्यस्त भी हो चुके हैं। लेकिन, इस बार की बाढ़ ने इन लोगों को बड़ा दर्द दे दिया है। इससे इलाके के लोग भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
इस साल एक नहीं, तीन-तीन बार यहां के लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ा है। बाढ़ के कारण दर्जनों लोगों के घर कट कर नदी के गर्भ में समा चुके हैं। सैकड़ों बीघे खेत का कोई अता-पता नहीं है। फसल तो मारी ही गयी, अब खेत भी गायब हो चुके हैं। अब खेत ही नहीं हैं, तो खेती कहां होगी। मतलब रोजगार का एकमात्र साधन भी खत्म।
ऐसे में यहां के लोगों की क्या हालत होगी, इसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि अब खतरा टल गया है। अभी बरसात का मौसम शेष है। किसी भी दिन बाढ़ फिर से आकर तबाही मचा सकती है। इसके बाद भी अब तक कोई यहां के लोगों को पूछने नहीं पहुंचा। लोगों में इससे प्रशासन और नेताओं के प्रति काफी नाराजगी है।
इसे बिहार के सबसे दुर्गम स्थानों में से एक माना जाता है। इस इलाके के लोगों को विकास किस चिड़िया का नाम है, यह नहीं पता। यहां जाना अपने आप में किसी चुनौत से कम नहीं।
अगर आपको दोन इलाके में जाना है तो वाल्मीकिनगर जंगल को पैदल या ट्रैक्टर से ही पार करना होगा। बीच में छोटी-बड़ी कुल 22 नदियों को भी पार करना होगा। इसी से यहां की दुर्गमता का पता लगाया जा सकता है।
बरसात के मौसम में पूरा इलाका टापू बन जाता है। यहां जाने के लिए रास्ता भी नहीं है। अगर कोई बीमार पड़ जाए है तो खाट को पालकी बना कर परिजन उसे पैदल ही जंगलों के बीच से होकर 20 से 25 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
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