सहरसा: बिहार में एक से बढ़कर एक तीर्थ और टूरिस्ट स्पॉट हैं। इसी क्रम में सहरसा जिले का सूर्य मंदिर भी है। जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर दूर ये तीर्थ स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक तौर पर बेहद खास है। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हालांकि छठ पूजा में इस स्थान का महत्व बढ़ जाता है। वर्ती महिलाएं यहां भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करती हैं।
स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में मिथिला पर शासन करने वाले कर्नाटक वंश के राजा नर सिंह के समय काल में हुआ था। हालांकि कालापहाड़ नाम के एक क्रूर शासक ने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया। जिसे बाद में संत कवि लक्ष्मीनाथ गोसाई द्वारा पुनर्निर्मित किया गया। मंदिर के पास एक कुआं भी है। जिसे लेकर ऐसा कहा जाता है कि इसके पानी से स्नान करने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है। छठ महापर्व और कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां श्रद्धालु विशेष तौर पर स्नान और पूजा करने आते हैं। इस दौरान यहां मेले का भी आयोजन कराया जाता है।
सहरसा के इस मंदिर में भगवान सूर्य की सात घोड़े पर सवार मूर्ति स्थापित है। इसे काले पत्थर को तराशकर बनाया गया है। इस मंदिर की महत्ता को देखते हुए राज्य धार्मिक न्यास द्वारा एक न्यास समिति का गठन किया गया था। वहीं मंदिर की जब-जब खुदाई हुई तो यहां कई देवी-देवताओं की प्राचीन और दुर्लभ प्रतिमाएं मिली। जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षण में ले लिया।
सहरसा से करीब 300 किलोमीटर दूर औरंगाबाद में भी भगवान सूर्य का मंदिर है। इसे कोणार्क के तर्ज पर देवार्क मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि ये देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके दरवाजे पूरब की बजाय पश्चिम दिशा में हैं। इसके अलावा श्रद्धालु यहां सूर्य के तीनों स्वरूप की पूजा होती है।
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