2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा विरो’धी दलों को एक साथ लाने के अभियान पर दिल्ली गए बिहार के सीएम और जेडीयू नेता नीतीश कुमार मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से उनके सरकारी आवास पर मिले। मीटिंग के बाद केजरीवाल ने ट्विटर पर बताया कि दोनों के बीच देश के कई गं’भीर मुद्दों पर चर्चा हुई जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, ऑपरेशन लोटस, विधायकों की खरीदकर-तोड़कर सरकारों को गिराना, निरंकुश भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी वगैरह शामिल हैं। नीतीश जो बात करने गए थे, उस पर जो बात हुई होगी, उस पर केजरीवाल ने कुछ नहीं कहा है। नीतीश कुमार तो वैसे भी कम बोलते हैं।
लेकिन केजरीवाल ने ट्विटर पर दो फोटो शेयर किया, एक तो घर के बाहर रिसीव करने वक्त का और दूसरा घर के अंदर बैठकर बात करने का। दूसरी फोटो में बहुत कुछ ऐसा है जो इशारों में खेलने जैसा है। नीतीश और केजरीवाल के बीच टेबल पर चरखा है जो आम लोगों के मन में महात्मा गांधी की छवि के साथ जुड़ा है। ऊपर एक फोटो फ्रेम है जिसमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और भगत सिंह नजर आ रहे हैं।
देश में इस समय जिस तरह की राजनीति चल रही है और सरकार चला रहे ज्यादातर नेताओं की नापसंद में जवाहरलाल नेहरू जिस दर्जे पर आते हैं, उसमें कांग्रेस से बाहर के किसी नेता के घर में नेहरू की फोटो का एक सांकेतिक मतलब है। उसमें भी उस नेता के घर जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों से लड़ रहा है और दोनों से लड़ते हुए आगे बढ़ने की राजनीति कर रहा है।
देश में अगर ये मानने वाले लोग हैं कि नेहरू पहले पीएम ना होते तो देश और बेहतर होता, तो ये मानने लोग उनसे कम नहीं हैं कि नेहरू नहीं होते तो देश की हालत इससे बुरी होती, राजनीति का स्वरूप भी कुछ और होता। नेहरू के साथ-साथ आजादी की लड़ाई के चार और नेताओं का फोटो फ्रेम केजरीवाल की राजनीति को सूट करता है। कांग्रेस और खास तौर पर नेहरू-गांधी परिवार से लड़ने के लिए बीजेपी तो कांग्रेस के ही कई पुराने नेताओं के नाम और इतिहास का इस्तेमाल कर ही रही है।
महात्मा गांधी तो सबके हैं। सरकार के, विपक्ष के और जो दोनों में नहीं हैं, उनके भी। सुभाष चंद्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री को लेकर बीजेपी का रवैया पॉजिटिव ही है। ऐसी बात करना जिससे लगे कि इनके साथ नाइंसाफी हुई और ये साजिश नेहरू के लिए की गई। वैसा ही जैसा दक्षिणपंथी सरदार बल्लभ भाई पटेल को लेकर बोलते हैं। भगत सिंह तो खुले क्रांतिकारी ही ठहरे और क्रांति वो शब्द है जो केजरीवाल को राजनीति में बहुत पसंद है।
संकेतों की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत माहिर हैं। अरविंद केजरीवाल भी उस विधा में निपुणता हासिल कर रहे हैं। इसका कोई चुनावी फायदा ना भी हो तो यह इमेज बनाने के काम आता है कि उस नेता के लिए आदर्श कौन-कौन लोग हैं। गांधी-नेहरू, बोस-भगत और शास्त्री किसी के आदर्श हों, तो इसमें कोई नुकसान भी नहीं है।
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