मुहर्रम को वैसे तो मुस्लिम समुदाय के लोग ही मनाते हैं, लेकिन हिंदुओं में भी मुहर्रम के प्रति आस्था कुछ कम नहीं है। सीवान के मैरवा प्रखंड के रहने वाला एक हिंदू परिवार करीब 40 वर्षों से मुहर्रम में ताजिया उठाता है। इनका कहना है कि परिवार में सुख समृद्धि और खुशहाली बनी रहे, इसी इबादत के साथ ताजिया रखने की परंपरा को पूर्वजों से निभाते आ रहे है।
मैरवा प्रखंड के इंग्लिश गांव के रहने वाले डोमा पासी बताते हैं कि बाबा व परबाबा के समय से इमाम हुसैन की याद में ताजिया रखी जा रही है। उसी परंपरा को निभा रहे है। उनके परिवार के लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इससे वर्ष भर परिवार खुशहाल रहता है।
वह सुबह से देर शाम तक बिना अन्न पानी के ताजिए के साथ चलते है। वह बताते हैं कि पहले दिनों से ही उनके घरों में नोहा ख्वानी का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो चहेल्लुम तक जारी रहता है। 10वीं की सुबह सीनाकोबी करते इनका जुलूस निकलता हैं, जो इनके मखसूस स्थान पर जाकर खत्म होता है।
दवा नहीं तो दुआ ने दिखाई चमत्कार
डोमा पासी बताते हैं कि आज से तकरीबन 40 साल पहले मेरे परदादा उसरी पासी की तबीयत काफी खराब रहती थी। कई डॉक्टरों से उन्हें दिखाया गया लेकिन उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुई। सभी ने ठीक होने का उम्मीद छोड़ दी थी। मोहर्रम चल रहा था, इसी दौरान उसरी पासी के पिता बाबूलाल पासी ने इमाम हुसैन साहेब से बेटे की सलामती की दुआ मांगी।
उन्होंने कहा था कि उनका बेटा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा तो उनका परिवार ताजिया रखेगा। परिवार के लोगों का मानना है कि कुछ ही दिनों के भीतर उसरी पासी पूरी तरह से ठीक होकर चलने फिरने लगे। तब से लेकर अब तक परिवार के लोग उस परंपरा को निभाते आ रहे है।
उनका मानना है कि इस त्योहार से उनका दो फायदा है। पहला फायदा इमाम हुसैन की कृपा उन पर बनी रहती है। वहीं दूसरी फायदा गांव में हिंदू मुस्लिम एकता बरकरार रहता है और उन्हें इज्जत भी मिलती है।
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