सरकार व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष जोर दे रही है. साथ ही तरह तरह की कौशल विकास की शिक्षा दे कर बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की योजनाएं चलाई जा रही है ताकि छात्र-छात्राएं शिक्षा हासिल करने के साथ ही रोजगार पाने के काबिल हो सकें.

यही वजह है कि इन दिनों सरकार के स्तर पर छात्रों को हाई स्कूल स्तर से ही हुनरमंद बनाने की कवायद चल रही है. लेकिन जिले में पहले से ही 2 हाई स्कूलों में इंटर स्तरीय 3-3 ट्रेड की शिक्षा की व्यवस्था है. लेकिन पिछले 4 सालों में दो स्कूलों के दो ट्रेडों को छोड़कर अन्य में नामांकन तक नहीं हुआ.


इसके कारणों में सबसे बड़ा कारण छात्रों को जानकारी का अभाव एवं विभागीय उदासीनता बड़ा कारण है. शहर के मोडेल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नर्सिंग और मिडवाइफरी कोर्स, फिशरीज, एमएलटी व आरएसबी इंटर विद्यालय में अकाउंटेंसी और ऑडिटिंग, इलेक्ट्रॉनिक टेक्नोलॉजीज, कुक्कुटपालन से संबंधित वोकेशनल कोर्स संचालित है.


लेकिन पठन-पाठन के लिए न शिक्षक है और न ही प्रयोगशाला है और न ही वर्कशॉप की व्यवस्था है. कुछेक कोर्स में नामांकन होता भी है तो विद्यार्थी स्वः अध्ययन कर उत्तीर्ण होते हैं. स्कूलों में वोकेशनल कोर्स के अनुदेशक और प्रयोगशाला सहायक का पद भी लगातार खाली हो रहा है. जिसे भरा नहीं जा रहा.


शिक्षक बताते हैं कि इंटर स्तरीय वोकेशनल कोर्स करा रहे 91 में से 77 विद्यालयों में लैब की सुविधा तक नहीं है. ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार बोर्ड परीक्षा से पूर्व होने वाले प्रैक्टिकल परीक्षाओं की क्या स्थिति होगी. शिक्षा विभाग की ओर से वर्ष 1993 से बिहार भर के 91 विद्यालयों में वोकेशनल कोर्सेज की शुरुआत की गयी थी. वोकेशनल कोर्स के रूप में कुल 24 ट्रेडों में पढ़ाई करायी जा रही है.


युवाओं को नामांकन के लिए बीएसईबी के ओएफएसएस ऑनलाइन पोर्टल पर वोकेशनल कोर्स तो सूचीबद्ध किया गया है. इसके बावजूद मुश्किल से कुछेक कोर्स में 3-10 छात्र-छात्राएं आवेदन करते हैं. इस संबंध में पूछने पर पर कोई भी जिला शिक्षा विभाग के पदाधिकारी बोलने को तैयार नहीं है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं करते कि छात्रों की उदासीनता के कारण नामांकन की बेहद कम देखने को मिल रही है. सही से छात्रों के बीच प्रचार-प्रसार की जरूरत है.
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