Press "Enter" to skip to content

खाकी से खादी की ओर… जानिए कितने पुलिस अफसर आज़’मा चुके हैं राजनी’ति में अपनी कि’स्मत?

PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राज्य के पुलिस महानिदेशक (#DGP) गुप्तेश्वर पांडेय (#IPS Gupteshwar Pandey) के राजनीति में आने की घट’ना में महत्वपूर्ण यह है कि वो महज 5 महीनों बाद 28 फरवरी 2021 को रिटा’यर होने वाले थे, लेकिन रिटा’यरमेंट से पहले ही पद छो’ड़कर राजनी’ति में आए हैं. हालांकि उनके चुनाव ल’ड़ने के बारे में अभी स्थि’तियां साफ नहीं हुई हैं, लेकिन पांडेय के इस कदम से ये च’र्चा ज़रूर चल पड़ी है कि पुलिस अफसर राजनी’ति में किस तरह आते रहे हैं और किस तरह राजनी’ति में उनका करि’यर रहा है.

12 सीटों से चुनाव ल’ड़ने के ऑ’फर होने की बात कहने वाले गुप्तेश्वर पांडेय से पहले भी पुलिस के आला अफसरों का राजनीति में पदार्प’ण होता रहा है. ​पुडुचेरी की वर्तमान उप राज्यपाल किरण बेदी का नाम इस फेह’रिस्त में सबसे ज़्यादा चर्चि’त माना जाता है. आइए आपको बताते हैं कि कैसे पुलिस अफसर राजनी’ति में आने के कारण चर्चि’त होते रहे हैं.

बिहार में पुरानी है परंपरा
गुप्तेश्वर पांडेय से पहले भी ऐसा हुआ है, जब पूर्व डीजीपी सिया’सत के मैदान में उतरे. नालंदा से चुनाव ल’ड़ने और हा’रने वाले पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा का नाम च’र्चित रहा. सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खि’लाफ उलझने को लेकर सु’र्खियों में रहे पूर्व डीजीपी डीपी ओझा भी सि’यासी अखा’ड़े में कू’दे थे और बेगूसराय से सीपीआई (एमएल) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि ओझा भी चुनावी राजनीति में ना’काम ही रहे.


बिहार के ही अन्य पुलिस अफसरों के राजनी’ति में आने की बात करें तो 1987 बैच के IPS अफसर सुनील कुमार का नाम याद आता है, जो जदयू में शामिल हुए. पूर्व डीजीपी सुनील कुमार के भाई अनिल कुमार कांग्रेस के विधायक हैं. और क्या आपको ‘गंगाजल’ वाले पुलिस अफसर की याद है?

आंख फोड़वा कांड से राजनीति तक
1980 के दशक में बिहार के भागलपुर में पुलिसकर्मियों द्वारा आरो’पियों की आंखें फो’ड़ दिए जाने की घट’ना को इतना कव’रेज मिला था कि पुलिस की क’ड़ी आलो’चना हुई थी. तब भागलपुर के एसपी रहे विष्णु दयाल राम के खि’लाफ सीबी’आई जां’च भी हुई थी लेकिन उनके खि’लाफ स’बूत नहीं मिले थे. इस कां’ड पर आधारित चर्चित बॉलीवुड फिल्म गंगाजल भी बनी थी. बहरहाल, अब वही विष्णु दयाल राम झारखंड के पलामू से सांसद हैं.

किरण बेदी के राजनीति में आने की कहानी
यह कहानी तकरीबन सभी जानते हैं कि पहले किरण बेदी ने आम आदमी पार्टी के साथ सिया’सी सफर शुरू किया था, लेकिन 2014 में उन्होंने भाजपा और नरेंद्र मोदी का खु’लकर सम’र्थन किया. उसके बाद भाजपा ने दिल्ली चुनाव के दौरान बेदी को सीएम के दावेदार के चेहरे के तौर पर प्रो’जेक्ट किया. आम आदमी पार्टी के हाथों हा’रने के बाद बेदी का एक तरह से चुनावी राजनी’ति से सरो’कार बहुत ब’चा नहीं.

अन्य राज्यों में ‘खाकी से खादी’ के च’र्चित चेहरे
इनके अलावा, सीआरपीएफ में एडीजी और झारखंड में डीजीपी रह चुके 1984 बैच के IPS अफसर डीके पांडेय भाजपा के टिकट पर निरसा सीट से चुनाव हा’र चुके हैं. मणिपुर में डीजीपी रहे 1976 बैच के IPS रहे युमनाम जयकुमार सिंह रिटा’यरमेंट के बाद राजनी’ति में आए थे और वीरेन सिंह सरकार में डिप्टी सीएम तक बने थे. फिलहाल वह एनपीपी के विधायक हैं, लेकिन सरकार के खि’लाफ बगा’वत कां’ड के चलते उन्हें पार्टी से बर्खा’स्त किया जा चुका है.

इसी फेहरिस्त में ओडिशा के डीजीपी रहे, प्रकाश मिश्रा का नाम है, जिन्हें विजि’लेंस के आ’रोप में पद से ह’टाया गया था. रिटाय’रमेंट के बाद मिश्रा भाजपा के टिकट पर चुनाव ल’ड़े लेकिन सफल नहीं हुए. हरियाणा के डीजीपी रहे विकास नारायण राय 1977 बैच के IPS अफसर थे, जो 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे. दक्षिण भारत में आर नटराज, एएक्स एलेग्जेंडर, एजी मौर्या जैसे नाम उल्लेखनीय रहे, जो पुलिस सेवा से राजनी’ति में सक्रिय हुए. वहीं, राजस्थान में, सवाई सिंह चौधरी, मदन मेघवाल और ​हरिप्रसाद शर्मा जैसे नामों को इस सिलसिले में याद किया जाता है.

बेंगलुरु के ‘सिंघम’ ने थामा भाजपा का दामन
दक्षिण बेंगलुरु में डिप्टी कमिश्नर रह चुके IPS अफसर अन्नमलई कुप्पुस्वामी ने पिछले महीने ही दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में पार्टी का दा’मन थामा. अन्नमलई इसलिए प्रमुख नाम बने क्योंकि उन्होंने राजनी’ति में आने के लिए पुलिस सेवा को बहुत कम उम्र में ​ही अलवि’दा कह दिया था. बेंगलुरु में अपरा’धियों पर शिं’कजा कसने के ए’क्शनों के लिए उन्हें ‘सिंघम’ कहा जाता रहा था.

सियासत में कैसे आते रहे हैं IPS?
पश्चिम बंगाल की सरकार में मंत्री बने यूएन बिस्वास की बात हो या फिर केंद्र सरकार में रहे नमो नारायण मीणा की, पुलिस के आला अफसरों का सिया’सत में आना और सिया’सत में रहना आ’सान नहीं रहा है. 2014 के चुनावों के दौरान कर्नाटक के बेंगलूरु से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व IPS केसी राममूर्ति ने चुनाव लड़ा था. उसी समय, झारखंड में सीनियर अफसर अमिताभ चौधरी ने सियासत में हाथ आज़मान के लिए वॉलंटरी रिटा’यरमेंट लिया था.

अरुण ओरांव से लेकर एचटी सांगलियान की बात हो या मिज़ोरम के ललदुहॉमा की, साफ दिखता है कि पुलिस अफसर राजनी’ति में ​करि’यर तला’शते रहे हैं. मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह के बारे में भी तकरीबन सभी जानते हैं कि कैसे वो नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री भी रहे. देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक के लगभग सभी राज्यों में ऐसा होता रहा है और पुलिस सेवा के कुछ चेहरे केंद्र की राजनी’ति तक चर्चि’त रहे हैं.

जब 15 गवर्नर थे पूर्व नौकरशाह
कुछ ही साल पहले जब भारी सरकारी मशीनरी तब्दीली हुई थी, तब 15 राज्यपाल पूर्व अधिकारी बने थे, जिनमें से 8 आईपीएस थे. अश्विनी कुमार, निखिल कुमार, एमके नारायणन, ईएसएल नरसिम्हन, रंजीत शेखर, बीएल जोशी, भारत वीर वांचू और गुरबचन जगत सभी पुलिस की विभिन्न संस्थाओं में आला अफसर रहे थे, जिन्हें अलग अलग राज्यों में राज्यपाल के पद सौं’पे गए थे.

सुशील कुमार शिंदे को मत भूलिए
देश के पूर्व गृह मंत्री रहे चुके और सुशील कुमार शिंदे इस विषय में एक कामयाब नाम है. शोलापुर में सत्र अदालत में ना’जिर के तौर पर अपना करि’यर शुरू करने वाले शिंदे महाराष्ट्र पुलिस में कॉंस्टेबल के पद पर भ’र्ती हुए थे. बाद में प्रमो’शन से वह सब इंस्पेक्टर बने और फिर सीआ’ईडी में छह साल तक उन्होंने सेवाएं दीं. इसके बाद शिंदे राजनी’ति में आए और कामयाब होते चले गए.

Share This Article
More from ELECTIONMore posts in ELECTION »
More from PoliceMore posts in Police »
More from PoliticsMore posts in Politics »

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *