पटना: राज्य विश्वविद्यालयों में अपने-अपने न्यायाधिकार को लेकर बिहार के शिक्षा विभाग और राजभवन के बीच जारी गतिरोध पर नीतीश सरकार ने नरमी के संकेत दिया है। राज्य सरकार ने इस मुद्दे के सौहार्द्रपूर्ण समाधान का आह्वान किया है। शिक्षामंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि सभी हितधारक बिहार में राज्य संचालित शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक माहौल में सुधार को कृतसंकल्प हैं। उन्होंने कहा, “सबकुछ सामान्य और सुचारु है। अगर कोई समस्या आती है तो उसका सौहार्द्रपूर्ण तरीके से समाधान किया जाना चाहिए। सभी मौजूदा ढांचागत संसाधनों का पूर्ण इस्तेमाल सुनिश्चित करके शैक्षणिक सुधार के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए काम कर रहे हैं।”
मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि सभी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के खातों से लेनदेन पर रोक लगाने संबंधी फैसले को स्थगित कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने नौ फरवरी को बुलाई गई समीक्षा बैठक में राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के शामिल नहीं होने पर यह कदम उठाया था। इस महीने की शुरुआत में राजभवन ने बैंकों को चिट्ठी लिखकर शिक्षा विभाग के आदेश को नहीं मानने को कहा था। राज्य के शिक्षा विभाग ने छह मार्च को विश्वविद्यालयों के खातों से लेनदेन पर रोक लगाने के अपने फैसले को स्थगित कर दिया था।
इसके बाद राजभवन से भी एक चिट्ठी जारी कर दी गई थी। ये चिट्ठी राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के वीसी यानी कुलपतियों के लिए थी। इस चिट्ठी में साफ लिखा गया था कि कोई भी कुलपति बगैर इजाजत के अपनी पोस्टिंग वाले शहर को नहीं छोड़ेंगे। राजभवन ने एक पत्र लिखकर कुलपतियों को राज्यपाल के कार्यालय से पूर्व अनुमति लिए बिना अपना शहर नहीं छोड़ने को कहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस पत्र के कारण शनिवार को निर्धारित बैठक में बाधा पैदा हो सकती है। राज्यपाल राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं।
ये बात काफी हद तक सही है कि कई विश्वविद्यालयों में लेट सेशन की रीति सी बन गई है। हालांकि पटना विश्वविद्यालय इसका एक अपवाद है। अकेले अगर साल 2022 की बात करें तो उसी वक्त बिहार के लगभग दर्जनभर विश्वविद्यालयों का सेशन लेट चल रहा था। नतीजा ये हो रहा है कि ग्रेजुएशन की तीन साल की पढ़ाई पूरी होने में 5 साल लग जा रहे हैं। इसका सीधा असर छात्रों और उनके नौकरी के अवसरों पर पड़ता है।
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