मोतिहारी: मोतिहारी में एक अनूठा स्कूल है जहां वेदों की पढ़ाई होती है। यहां बच्चों की दिनचर्या स्वस्तिवाचन और संस्कृत श्लोकों के वाचन से शुरू होती है। स्कूल के बच्चे मोबाइल से पूरी तरह दूर रहते हैं। ये बच्चे अफसर नहीं, विद्वान बनकर भारतीय संस्कृति के वाहक बनना चाहते हैं। इस आवासीय स्कूल में अभी 87 बच्चे अध्ययनरत हैं।
मोतिहारी शहर के छोटा बरियारपुर स्थित आर्ष विद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा विद्यालय में रोजाना सुबह चार बजे जब अन्य बच्चे नींद में रहते हैं, इस स्कूल के छात्र अपनी दैनिक क्रिया समाप्त कर स्वस्तिवाचन, गायत्री पाठ और रुद्राभिषेक की समाप्ति के बाद वेदों का अध्ययन शुरू कर देते हैं। छात्रों का सस्वर संस्कृत पाठ विद्यालय में गूंजता रहता है। छात्र सुबह, दोपहर व शाम तीनों समय वेद पाठ करते हैं। यह संस्थान भारत सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वैदिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध व अनुदानित है।
प्रधानाचार्य सुशील कुमार पांडेय बताते हैं कि विद्यालय में छात्रों का नामांकन लिखित व मौखिक परीक्षा के आधार पर होता है। नामांकन के लिए न्यूनतम उम्र नौ वर्ष तथा अधिकतम बारह वर्ष निर्धारित है। प्रधानाचार्य ने बताया कि संस्थान में नामांकित बच्चों की कुल संख्या 87 है। इनमें से साठ सीट भारत सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन महर्षि संदीपनी राष्ट्रीय वैदिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध व अनुदानित है। इन साठ सीटों पर नामांकित बच्चों के पठन-पाठन तथा आवासन की व्यवस्था पूर्णत: नि:शुल्क है। शेष 27 बच्चों के पठन-पाठन तथा आवासन की व्यवस्था संस्थान अपने स्तर से करता है।
इस विद्यालय में छठी कक्षा से ही वेदों की पढ़ाई आरंभ हो जाती है। आठवीं व दसवीं की परीक्षा बोर्ड द्वारा होती है। दसवीं की परीक्षा पास करने पर मैट्रिक के समकक्ष वेदभूषण तथा 12वीं की परीक्षा पास करने पर वेदविभूषण की डिग्री मिलती है। प्रधानाचार्य ने बताया कि इस संस्थान में पटना, बक्सर, बेगूसराय, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण के छात्र ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद व कृष्ण यजुर्वेद के साथ-साथ विज्ञान, कम्प्यूटर, गणित व अंग्रेजी आदि आधुनिक विषयों की भी पढ़ाई करते हैं।
अन्य विद्यालयों के बच्चों के विपरीत इस विद्यालय के बच्चे अफसर नहीं, बल्कि विद्वान बनकर भारतीय संस्कृति को लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। द्वितीय वर्ष के छात्र अभिनव पाण्डेय, सुनील व अभिषेक ने बताया कि भारतीय संस्कृति को जन-जन तक ले जाने के लिए हम अफसर नहीं, बल्कि विद्वान बनना चाहते हैं ताकि देश में हमारा भी कुछ योगदान हो सके। वेद विद्यालय के दस आचार्य दैनिक कार्यसारिणी के अनुसार छात्रों को वेदों का अध्ययन कराते हैं। प्रधानाचार्य ने बताया कि वेदों की अन्य शाखाओं का पठन-पाठन विद्यालय में हो और छात्रों की संख्या बढ़े, इस दिशा में प्रयास चल रहा है।
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