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बिहार: 750 करोड़ की सिंचाई परियोजना, फिर भी पानी को तरस रहे किसान, जानें वजह

बिहार: साढ़े सात सौ करोड़ की लागत से निर्मित जिले के उदेरा स्थान सिंचाई परियोजना से  जहानाबाद और नालंदा  के  किसानों को लाभ नहीं मिल रहा है। बारिश नहीं होने से फल्गु नदी सूखी है। इस परियोजना से निकलने वाली वितरणियों में पानी नहीं है। परियोजना का विशाल जल संग्रहण क्षेत्र टापू में तब्दील हो गया है। जल संग्रहण क्षेत्र बालू एवं मिट्टी से भरा पड़ा है, जिससे जल संग्रहण क्षमता भी कम हो गई है।

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जानकारी के अनुसार इस परियोजना का सिंचित क्षेत्र 41000 हेक्टेयर है, जिसमें जहानाबाद और नालंदा जिले के कई प्रखंड शामिल हैं, लेकिन जल संग्रहण क्षमता कम होने से अब नहरों में पानी भी काफी काम दिनों तक पहुंच पाता है। बराज से एक बार भी अगर फल्गु नदी में पानी आ जाएगा तब किसान सिंचाई के मामले में बिल्कुल आत्मनिर्भर हो जाएंगे, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया।

एक तो नहरों के अंतिम छोर तक पानी यदा-कदा ही पहुंच पाया है। जल संग्रहण क्षेत्र की स्थिति को देखकर घोसी के पूर्व विधायक राहुल कुमार ने पिछले वर्ष जल संग्रहण क्षेत्र से भरे हुए गाद को हटाने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि उद्घाटन के पूर्व जल संग्रहण क्षेत्र को मुकम्मल तौर पर दुरुस्त करना जरूरी था।

इस सीजन दो दिनों के लिए छोड़ा गया पानी 
भगवानपुर, कोकरसा, रुस्तमपुर आदि गांव के किसानों ने बताया कि बराज के पहले बीयर से सिंचाई के लिए नहरों में पानी छोड़ा जाता था, जिससे एक बार फल्गु नदी में पानी आ जाने के बाद काफी दिनों तक किसानों को नहरों में पानी मिलता था, लेकिन बीयर से बराज बन जाने के बाद की स्थिति बदतर हो गयी। अपेक्षित जो लाभ किसानों को बताया गया था वह नहीं मिल पा रहा है।

इस वर्ष फल्गु नदी में पानी आने के बाद नहरों में पानी मात्र दो दिनों के लिए छोड़ा गया। विपरीत मौसम के बाद भी किसानों द्वारा नहरों में पानी आ जाने के बाद धान की रोपाई शुरू कर दी गई। अब रोपे गए धान को बचाना जहमत साबित हो रहा है।खेतों में सिंचाई के लिए कराई गई बोरिंग से पानी निकल रहा है।अधिकतर बोरिंग भी फेल हो चुकी हैं। किसानों के पास रोपे गए धान की फसल को बचाने की बात तो दूर झुलसते बिचड़ों को भी बचाना मुहाल हो रहा है। किसान अब उदास मन से बादल निहार रहे हैं या तो फिर पंचांग में वर्षा का योग ढूंढ रहे हैं।

 

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