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खुलासा: छपरा श’राबकांड में 42 नहीं 77 मौ’तें, पुलिस-प्रशासन पर गं’भीर आ’रोप

छपरा: बिहार के छपरा में हुए जह’रीली श’राबकांड में 42 नहीं बल्कि 77 लोगों की मौ’त हुई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। आयोग ने अपनी वेबसाइट पर शरा’बकांड की जांच रिपोर्ट जारी कर दी है। इसमें नीतीश सरकार की पुलिस और प्रशासन पर गं’भीर सवाल खड़े किए गए हैं। आयोग ने एसपी और डीएम जैसे अधिकारियों पर अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभाने का आ’रोप लगाया।

छपरा शराबकांड का गुनहगार कौन? हकीकत का पता लगाने बिहार जाएगी NHRC की टीम -  NHRC will send team to Bihar to investigate Chhapra hooch tragedy case ntc  - AajTak

सारण जिले में पिछले साल दिसंबर में ज’हरीली श’राब से दर्जनों लोगों की मौ’तें हुई थीं। सारण से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्रभी राजीव प्रताप रूडी की मांग के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम छपरा पहुंची थी। टीम ने तीन दिन तक विभिन्न इलाकों का दौरा करके विस्तृत जांच की। अब इसकी रिपोर्ट जारी कर दी गई है। रिपोर्ट में कुल 77 लोगों की मौ’त का उल्लेख किया गया है, जबकि राज्य सरकार की ओर से श’राबकांड में महज 42 लोगों की मौ’त की पुष्टि की गई थी।

75 फीसदी मृ’तक पिछड़ी जातियों से
मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि म’रने वालों में किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरी वाले और बेरोजगार शामिल हैं। पीड़ि’तों में 75 फीसदी पिछड़ी जातियों से थे। जांच के दौरान पुलिस-प्रशासन की ओर से मानवाधिकार टीम का सहयोग नहीं किया गया और नहीं उसे सुरक्षा दी गई। आयोग का कहना है कि राज्य में पूर्ण शरा’बबंदी कानून की पालना की जिम्मेदारी उत्पाद आयुक्त की है और जिले में एसपी और डीएम भी अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल रहे। 

म’रने वाले परिवार के अकेले कमाऊ सदस्य थे
रिपोर्ट में कहा गया है कि जह’रीली श’राबकांड में मरने वाले लोगों में अधिकतर अपने घरों के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे। उनकी पत्नियां और नाबालिग बच्चे आश्रित थे, जिनकी स्थिति ज्यादातर खराब थी। कुछ लोग रोजाना श’राब का सेवन करते थे, तो वहीं कुछ कभी-कभार दा’रू पीते थे। मानवाधिकार आयोग का कहना है कि राज्य में श’राब की बिक्री पर रोक लगा दी कई है, लेकिन नकली और अवै’ध श’राब की बिक्री पूरी तरह से नहीं रुक रही है। इससे मानव जीवन को भारी नुकसान हुआ है।

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