पटना: जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि वे भले ही जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं लेकिन उनके पास पार्टी में कोई अधिकार नहीं है। नीतीश कुमार और ललन सिंह ने उन्हें पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर झुनझुना पकड़ा दिया और एमएलसी यानी बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाकर लॉलीपॉप थमा दिया।
उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में अपने आवास पर मंगलवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि नीतीश ने कह रहे हैं जेडीयू में वे आए तो, हमने उनको इज्जत दी। फिर कहा कि कुशवाहा से बहुत स्नेह करते हैं। किस तरह से इज्जत दी या कहने का मतलब है कि पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनाया, एमएलसी बनाया, यही इज्जत है। कुशवाहा ने कहा कि उन्हें जेडीयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष जरूर बनाया गया, मगर उसका कोई मतलब नहीं है। जब मुझे ये पद दिया गया तो लगता था कि दायित्वों का निर्वहन करने का मौका मिलेगा। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा कर पाएंगे। बाद में पता चला कि संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर मेरे हाथ में झुनझुना थमा दिया गया।
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जिस दिन उन्हें पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया, उस दिन जेडीयू के संविधान में इस बारे में कुछ नहीं लिखा गया था। बाद में संशोधन हुआ और ये बात लिखी गई कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों को मनोनित करेंगे। यानी कि संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के पास उस बोर्ड के सदस्यों को मनोनित करने का अधिकार तक नहीं दिया गया। यहां तक कि दो सालों में खुद ललन सिंह ने भी सदस्य नहीं बनाए। यही हाल आज भी है, जहां वह एक भी मेंबर नहीं बना सकता हूं।
उन्होंने बताया कि अगर उनके पार्लियामेंट्री बोर्ड की कमिटी होती तो, पार्टी में किसी भी उम्मीदवारी का चयन करना हो तो बोर्ड बैठकर विचार करता। जब बोर्ड ही नहीं होता तो क्या विचार करे। कुशवाहा ने कहा कि पार्टी ने संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते उनसे कोई सुझाव भी नहीं मांगे। एमएलसी चुनाव हो, राज्यसभा सदस्यों की उम्मीदवारी हो, कई मौके आए, उनसे नहीं पूछा गया। उन्होंने खुद आगे रहकर कुछ मौकों पर अपने सुझाव दिए, जिनपर ध्यान नहीं दिया गया।
‘एमएलसी बनाकर लॉलीपॉप थमाया’
उपेंद्र कुशवाहा ने आगे कहा कि नीतीश कुमार कहते हैं कि उन्होंने मुझे एमएलसी बनाया। मगर वे सरकारी नौकरी नहीं कर रहे हैं, बल्कि राजनीति कर रहे हैं। एमएलसी बनना कोई नौकरी नहीं, राजनीति होती है। जहां रहकर अपने लोगों के हितों की रक्षा कर सके। पार्टी के सिद्धांत को आगे बढ़ा सके। समाज को न्याय दिला सके। एमएलसी या कोई और पद कोई लक्ष्य नहीं होता, वो साधन है। इससे जरूरतमंद लोगों को न्याय दिलाया जाता है। एमएलसी बनने के बाद मेरा अधिकार पार्टी मानती ही नहीं है। मुझे एमएलसी के नाम पर लॉलीपॉप थमा दिया गया। मुझे राज्यसभा का पद छोड़ने में मलाल नहीं होता है, तो एमएलसी कौनसी बड़ी चीज है।
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