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20 हजार में डिप्लोमा, 80 हजार में डिग्री ; नोएडा से देश भर में नेटवर्क चला रहा गैंग

नोएडा पुलिस ने सेक्टर-63 में एक गिरो’ह का भंडाफो’ड़ किया है जो देशभर में 20 से 80 हजार रुपये में एमबीए, एमटेक आदि की फर्जी डिग्री और डिप्लोमा बेच रहा था। गूगल पर फर्जी विज्ञापन देकर गिरोह के सदस्य लोगों को फांसते थे।नोएडा पुलिस ने इस मामले में पटना के गर्दनीबाग थाना इलाके के वी-16 मौर्या नगर, अनीसाबाद के रहने वाले एक युवक आनन्द शेखर और गली न.-5 ममूरा, नोएडा के निवासी चिराग शर्मा को गिर’फ्तार किया है। आनंद गाजियाबाद में किराये पर रहता था।

गूगल पर विज्ञापन दे 20 हजार में डिप्लोमा,  80 हजार में डिग्री ; नोएडा से देश भर में नेटवर्क चला रहा गैंग

कंप्यूटर, सिम, मार्क्सशीट, मोबाइल ज’ब्त

दोनों के पास से वर्ष 2000, 2002 तक की पुरानी फर्जी डिग्री और डिप्लोमा भी मिले हैं। एडीसीपी सेंट्रल जोन साद मियां ने बताया कि पुलिस को सूचना मिली कि सेक्टर-63 के बी-44 स्थित इमारत में फर्जी मार्कशीट, डिप्लोमा और डिग्री बेचने का धंधा चल रहा है। पुलिस ने छापा मारकर वहां से दो अभियुक्तों आनन्द और चिराग को गिरफ्तार किया। इनके पास से पुलिस ने 85 फर्जी मार्कशीट, सात खाली अंक तालिका शीट, आठ फर्जी मोहर, 33 मोबाइल फोन, 14 कंप्यूटर और 55 सिम बरामद किए हैं।

पुलिस ने बताया कि नोएडा से पहले बेंगलुरु में इसी तरह से लोगों को डिप्लोमा और डिग्री बेचने का धंधा किया गया था। बेंगलुरु में जनवरी 2022 में आनन्द को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वहां से जमानत मिलने के बाद मार्च 2022 में उसने नोएडा में आकर अपना धंधा फिर से प्रारम्भ कर दिया था। खुलासा किया है कि वह दस साल से फर्जी मार्कशीट, डिग्री और डिप्लोमा बेचने का काम कर रहे हैं।

गूगल पर देते हैं विज्ञापन

सेक्टर-63 थाना प्रभारी ने बताया कि आरो’पित सोशल मीडिया पर गूगल के माध्यम से विज्ञापन देते थे। इसके लिए प्रतिदिन के हिसाब से यह भुगतान करते थे। इन विज्ञापनों में वह डिग्री और डिप्लोमा का लालच देकर लोगों को अपने झांसे में फंसाते थे और एक बार फोन आने या विज्ञापन पर क्लिक करने के बाद वह खुद ही उनसे संपर्क करते थे और उन्हें ठगी का शिकार बनाते थे। इसके अलावा वह कोचिंग संस्थानों, कालेजों आदि से भी छात्र-छात्राओं के बारे में जानकारी जुटाकर उन्हें फोन करते थे और उन्हें कम पैसे और कम मेहनत में डिग्री और डिप्लोमा उपलब्ध कराने का झांसा देते थे। इसके लिए वह खुद को विद्या भारती इंस्टीट्यूट और एम्पिरियल इंस्टीट्यूट का संचालक बताते थे, जबकि इस नाम से कोई इंस्टीट्यूट नहीं था।

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