बिहार के मुंगेर जिले में कोरोना के मरीजों के मौ’त के आंकड़ों को छिपाये जाने का मामला किसी से अब छिपा नहीं रह गया है। स्वास्थ्य विभाग के कुछ चिकित्सक तथा पदाधिकारी इसी तरह से कोरोना मरीज की मौ’त के मामले को छिपाने का काम रहे हैं, जिसने बीते वर्ष कोरोना की दूसरे लहर में कोविड सेंटर में इलाज के दौरान अपना दम तोड़ दिया।
ऐसा ही एक मामला बेलन बाजार निवासी शांतनु कुमार सिंह के साथ भी हुआ है। शांतनु कुमार ने बताया कि उनके पिता 80 वर्षीय गिरीश नंदन प्रसाद सिंह बीते वर्ष कोरोना के दूसरे लहर के दौरान संक्रमित हो गये थे। जिसके बाद उन्हें गंभीर हालत में पूरबसरय स्थित जीएनएम स्कूल में बनाये गये कोविड केयर सेंटर में 29 अप्रैल को भर्ती किया गया और ऑक्सीजन के अभाव में 30 अप्रैल की सुबह उनकी मौ’त हो गयी।
मौ’त के बाद जब परिजन शव को रिसिव करने गये तो उनके बॉडी को उनके भाई कंचन सिंह ने खुद से पीपीई किट पहनकर प्लास्टिक में पैक किया और अंतिम संस्कार के लिए ले गये।
अंतिम संस्कार के बाद जब परिजनों ने वहां के नोडल पदाधिकारी से डेस्थ सर्टिफिकेट की मांग की, तो उसमें बताया गया कि उनकी मौत कोरोना से नहीं हुई है, उनकी मौत हृदय गति रुक जाने से हुई है। कोविड सेंटर से परिजनों को उनके कोरोना से मरने का ना तो कोई प्रमाण पत्र दिया गया और न ही वहां से उन्हें मरीज के बीएसटी की फोटो कॉपी दी गयी।
बीएसटी की फोटो कॉपी मांगने पर बताया गया कि बीएसटी खो गयी है। शांतनु ने बताया कि उन्हें उनके पिता का कोविड से मौत का कोई प्रमाण-पत्र नहीं मिलने के कारण वे अब तक सरकार से मिलने वाली अनुग्रह अनुदान की राशि से वंचित हैं।
गौरतलब है कि कोविड सेंटर में वैसे ही मरीज को भर्ती किया गया था, जिन्हें कोरोना संक्रमण हुआ था। उस वक्त स्वस्थ व्यक्ति भी यदि बिना एहतियात के कोविड सेंटर चले जाते थे तो उन्हें भी कोरोना संक्रमण हो जाता था। ऐसे में ग्रिस नंदन सिंह को अब तक कोविड मरीज क्यों नहीं घोषित किया गया है।
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