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शेखपुरा की रूबी जूस बेचकर बच्चों को बनाएगी अफसर: श’राब की ल’त से 5 साल पहले गई पति की जा’न

शेखपुरा के एक गरीब परिवार की एक 35 वर्षीय महिला रूबी देवी पति की मौ’त के बाद अपने परिवार का भरण पोषण बरबीघा बाजार में सड़क किनारे फलों का जूस बेचकर पिछले पांच साल से कर रही है। प्रत्येक दिन सुबह 10 बजे तक घर का काम निपटा कर वह बरबीघा शहर के डाक घर के निकट ठेला लेकर पहुंच जाती है और लोगों के बीच फलों का जूस बेचने में तल्लीन हो जाती है। दिन भर सड़क पर खड़ी रहकर जूस बेचने के बाद शाम ढ्लने पर घर वापस पहुंचती है।

अपने बच्चों को बड़ा अफसर बनाने की मंशा पाल रखी रूबी देवी बरबीघा नगर क्षेत्र के छोटी संगत मोहल्ला की रहने वाली है। पिछले पांच वर्ष पूर्व तक रूबी देवी का जीवन हंसी खुशी के साथ व्यतीत हो रहा था। लेकिन अचानक उसके ऊपर पहाड़ टूट पड़ा। जब उसके शराबी पति शंकर प्रसाद की लीवर कैंसर के कारण मौ’त हो गई। पति की मौ’त के बाद रूबी देवी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पति के जाने के बाद घर चलाने में भी परेशानी होने लगी।

नारी उत्थान और नारी सशक्तिकरण का बात करने वाले समाज के किसी भी ठेकेदार ने उसकी सुध नहीं ली । 9 वर्षीय सुमित कुमार और 2 वर्षीय राजा कुमार नामक दो पुत्रों के साथ महिला खुद को असहाय महसूस करने लगी। लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी रूबी ने हिम्मत नहीं हारी और सबसे पहले घर-घर जाकर दाई का काम करना शुरू किया। वक्त तेजी से बीता और उसने बर्तन जूठा धोकर कुछ रुपए इकट्ठा करके खुद का व्यवसाय करने का मन बनाया।

इस दौरान महिला ने कभी भी बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो, इसका पूरा ध्यान भी रखा। महिला रूबी देवी अब पति के गम को बुलाकर अपने दोनो बेटों को अफसर बनाने का ख्वाब देखते हुए प्रत्येक दिन जूस बेचने का काम कर रही है। रूबी ने बताया कि जूस बेचने का कार्य शुरू करने पर समाज का काफी ताना-बाना झेलना पड़ा।

लेकिन वह समाज के ताने-बाने का परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस कार्य में बहादुरी के साथ डटी है। इस जूस बेचने के कारोबार से उसे 4 से 5 सौ रुपए की आमदनी प्रति दिन हो जाती है। अभी बड़ा बेटा सुमित कुमार दसवी कक्षा में चला गया है। वह भी कभी-कभी मां के काम में हाथ बंटाता है। रूबी देवी का हौसला बताता है कि अगर महिला विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत से काम ले तो वह भी समाज में कदम से कदम मिलाकर चल सकती है। रूबी देवी आज वैसी बेवश महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी है, जो खुद को अबला और असहाय न समझकर सिर्फ अपनी मेहनत और लगन की बदौलत अपने परिवार का भरण पोषण कर किसी का मोहताज नहीं है।

 

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