छतीसगढ़ हाईकोर्ट ने पिता की कस्टड़ी से 14 साल के बच्चे को उसकी मां को सौंपने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज के कुछ सदस्यों द्वारा दिया गया चरित्र प्रमाण पत्र शुतुरमुर्ग मानसिकता वाली हो सकती हैं।
एक महिला के चरित्र को तय करने का आधार नहीं हो सकता। इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने महासमुंद के फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें प्रतिवादी पिता के पक्ष में 14 साल के बच्चे की कस्टडी दी गई थी। हाईकोर्ट के जस्टिस जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन ने इस मामले की सुनवाई की।
प्रतिवादी पिता ने अभिभावक अधिनियम 1890 की धारा 25 के तहत एक आवेदन दायर कर बच्चे को संरक्षण में लेने की मांग की थी। बच्चा तलाकशुदा पत्नी यानी अपनी मां के साथ था। पूर्व पति और पत्नी के बीच विवाह को भंग करने वाले तलाक के आदेश में बच्चे की कस्टडी मां को दी गई थी। फैमिली कोर्ट में दिए अपने आवेदन में पिता ने इस आधार पर बच्चे की कस्टडी मांगी थी की, कि मां अन्य पुरुष के संपर्क में है और महिला का पहनावा भी सही नहीं है। पति ने यह तर्क दिया कि यदि बच्चे को उसकी कस्टडी में रखा जाता है तो बच्चे के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
पति ने फैमिली कोर्ट में दिए आवेदन में पत्नी पर यह आरो’प भी लगाया की वह अ’वैध संबंध में है। शरा’ब, गुटखा, सिग’रेट का सेवन भी करती थी। इस आधार पर फैमिली कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा पिता को दे दी। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को बच्चे की मां ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। महिला के वकील ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट का आदेश केवल तीसरे व्यक्ति के बयान पर आधारित है। मौखिक बयानों के अलावा तथ्य को स्थापित करने और पत्नी के चरित्र के अनुमान लगाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है।
दोनों पक्षों के गवाहों द्वारा दिए साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि पिता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य उनके अपने विचारों और अन्य लोगों की बातों पर आधारित थे। इस संबंध में, न्यायालय ने विशेष रूप से नोट किया कि यदि एक महिला को नौकरी करने की आवश्यकता है, वह भी अपनी आजीविका के लिए तो स्वाभाविक रूप से उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की आवश्यकता होगी और केवल इस तथ्य के कारण कि सार्वजनिक रूप से पुरुष के साथ कार में आना-जाना कर रही है, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसने अपनी शुद्धता खो दी है।
श’राब और धू’म्रपान आदि के सेवन के आरो’प पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब महिला के चरित्र की ह’त्या के लिए हम’ला किया जाता है तो एक सीमा रेखा निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। वादी के गवाहों के बयान से पता चलता है कि वे महिला की पोशाक जींस और टी-शर्ट पहनती है, और किसी पुरुष सदस्य के साथ चल रही है। ऐसे में चरित्र का आकलन करना गलत है। हमें डर है कि अगर इस तरह की गलत कल्पना को महत्व दिया गया तो महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक लंबी कठिन लड़ाई होगी। अगर पूरी बात यह दिखाने के लिए थी कि पत्नी के चरित्र के कारण, बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तो सबूत बहुत अधिक पुख्ता होने चाहिए।
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