मिड ब्रेन एक्टिवेशन मानसिक विकास और युवाओं में अवसाद समाप्ति के लिए क्रांतिकारक हो सकता है। इस बात के सबूत आपको बिहार के अररिया के एक गांव में मिल जाएंगे। यहां कुछ ऐसे बच्चे हैं जो आंखों पर मोटी पट्टी बांधकर फर्राटे से किसी किताब को सिर्फ महसूस कर पढ़ लेते हैं। इतना ही नहीं बंद आंखों से रंग भी पहचान लेते हैं।
साथ ही ये बच्चे बिना देखे सिर्फ छू कर, आधार कार्ड और किसी रुपये में अंकित सीरियल नंबर भी बड़ी आसानी से बता सकते हैं। अररिया के इन बच्चों के कारनामे की खबर देखकर हर कोई अवाक रह जाता है।
मिली जानकारी के मुताबिक, अररिया के सिकटी प्रखंड के भीड़भिड़ी गांव के ये बच्चे अपनी आंखों में पट्टी बांधकर ऐसे अनोखे कारनामे करते हैं जिसे देख कोई भी अचंभित हो उठता है। आंखों पर मोटी पट्टी बांधकर ये बच्चे सिर्फ महसूस कर न सिर्फ किताब पढ़ रहे हैं बल्कि किसी नोट का सीरियल नंबर भी आसानी से बता दे रहे हैं। इस कहानी पर यकीन कर पाना मुमकिन नहीं था। लेकिन जब इस बात की पुष्टि की गई तो यह सही साबित हुई। ख़बरों के अनुसार, मनोविज्ञान की एक पद्धति मिड ब्रेन एक्टिवेशन के जरिए ही ये संभव हो पा रहा है। इस गांव के एक युवक अनमोल यादव ने इसकी ट्रेनिंग जयपुर में ली और अब अपने गांव के बच्चों को ट्रेंड कर रहे हैं। ट्रेनर अनमोल यादव बताते हैं कि यह कोई जादू नहीं बल्कि शत-प्रतिशत मनोविज्ञानी अभ्यास मात्र है। वहीं, ट्रेनिंग ले रही छात्रा स्मिता कुमारी और अन्य बच्चों ने बताया कि अनमोल सर ने इसकी ट्रेनिंग दी है। बच्चों ने बताया कि इसके अभ्यास से अब पढ़ने में ध्यान केंद्रित रहता है।
अनमोल यादव जयपुर से मनोविज्ञान से जुड़े कोर्स में ट्रेंड होकर गांव लौटे हैं और इसी कोर्स के जरिये गांव के बच्चे ऐसा कर पाने में दक्ष होते जा रहे हैं। अनमोल का कहना है कि मिड ब्रेन में दो हिस्से होते हैं। बायां हिस्सा लौजिकल तो दायां हिस्सा क्रिएटिव होता है। मिड ब्रेन के दोनों हिस्सों को जब जोड़ दिया जाता है तो इसे मिड ब्रेन एक्टिवेशन कहते हैं। इससे मेमोरी पॉवर, एकाग्रता, आत्मविश्वास, रचनात्मक बढ़ती है और तनाव प्रबंधन में भी मदद मिलती है। तंत्रिका कोशिकाएं काफी एक्टिव हो जाती हैं और किसी भी चीज को बिना देखे महसूस किया जा सकता है। बता दें, अनमोल यादव ने जब इसकी शुरुआत गांव में की तो लोग डरने लगे। ग्रामीणों ने इसे जादू-टोना बताया, लेकिन अब धीरे-धीरे ग्रामीण भी इस वैज्ञानिक प्रयोग के महत्व को समझने लगे हैं। बच्चों की अभिभावक सुजीता कुमारी कहती हैं कि पहले तो यह सब डरावना लग रहा था, लेकिन इसके अभ्यास से हमारे बच्चों की बुद्धि तीक्ष्ण होती जा रही है। मनोविज्ञान की यह कहानी जब अनमोल ने गांव में शुरू किया तो ग्रामीण इसे भूतों और पागलों से जोडकर देखने लगे थे। लेकिन, जब इसका असर हुआ तो अब ग्रामीण अभिभावक भी मानते हैं कि मनोविज्ञान के इस तरीके से असंभव को संभव किया जा सकता है।
अनोखी और अजब-गजब दिखने वाली ये सारी चीजें एक सामान्य मनोविज्ञान है जो विदेशों और अपने देश के चुनिंदे बड़े शहरों में सिखाई भी जा रही है। हमारे दिमाग का मध्य भाग देखने और सुनने की सुचना देने में मदद करता है, जिसे ध्यान और योग की मदद से जोड़ दिया जाता है। इस तरह की ट्रेनिंग यदि बिहार के सरकारी स्कूलों में दी जाए तो बच्चों के मानसिक विकास और युवाओं में अवसाद निदान में क्रांति आ सकती है।
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