दरभंगा: देश के चार सबसे प्राचीन दक्षिणेश्वरी काली मंदिरों में से एक कभी बंगाल का द्वार कहे जाने वाले दरभंगा में है। शहर के शिवाजीनगर में स्थित इस मंदिर को यहां भवतारिणी काली काली स्थान के नाम से जाना जाता है। इस भव्य मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बंगाल से आए सिद्ध संत बाबा गौरीशंकर ठाकुर ने की थी। दक्षिणेश्वरी काली मंदिर और इसकी विशेषताओं का उल्लेख बिहारी लाल ‘फितरत’ द्वारा 1883 में रचित पुस्तक ‘आइन तिरहुत’ में भी प्रमुखता से मिलता है।
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि बंगाल से आए बाबा शंकर ठाकुर बागमती नदी के तट पर स्थित श्मशान के पास पहुंचे तो उन्होंने वहां दिव्य ज्योतिपुंज देखा। इसके बाद बाबा ने इस स्थान पर पिंडी स्वरूप देवी की स्थापना कर पूजा-अर्चना शुरू की। कालांतर में इस स्थान को प्रसिद्धि मिलने लगी। धीरे-धीरे मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गईं। यहां सदियों से निर्बाध पूजा हो रही है। शिवाजीनगर निवासी अरुण शर्मा बताते हैं कि बाबा गौरी शंकर ठाकुर ने इसी स्थान पर जीवित समाधि ली थी।
मंदिर के प्रांगण में बूढ़ा महादेव और मां दुर्गा का भी मंदिर है। यहां स्थापित महादेव को लोग बाबा बत्तीसानाथ के नाम से जानते हैं, क्योंकि मंदिर में 32 शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर की मां दुर्गा को श्रद्धालु बड़ी महरानी दुर्गा माता के नाम से जानते हैं। हर साल शारदीय नवरात्र में यहां धूमधाम से मां दुर्गा की पूजा होती है।
इस साल भी भव्य आयोजन की तैयारी चल रही है। दुर्गा पूजा समिति के संरक्षक विजय गामी ने बताया कि यह दरभंगा के महत्वपूर्ण प्राचीन स्थानों में से एक और भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां रोजाना बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के अलावा दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। शिवाजीनगर के ही अशोक गामी ने बताया कि भवतारिणी काली मां में लोगों की अगाध आस्था है। नवरात्र के अलावा सावन की सोमवारी, शिवरात्रि व अन्य अवसरों पर भी इस मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
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