ओमप्रकाश दीपक
मुजफ्फरपुर। पसीने से लथपथ, आंखों से बहते आसू और रोते मासूम को गोद में लिए अपने टूटे आशियाने को निहार रही थी कुशमी देवी। छन भर में बसा बसाया घर टूटकर मलबे में बिखर गया।
वषार्ें पेट काटकर तैयार किया गया आशियाना सोमवार के दोपहर में पल भर में धारासायी हो गया। ईश्वर ही मालिक है जो चाहे कराये। अब उनकी जो इच्छा होगी वहीं करना होगा। आज की रात तो भोजन पकाना मुश्किल है। चूड़ा खाकर ही काम चला लेंगे। कल के लिए सोचा जायेगा। आज प्लास्टिक से घेर कर सारा परिवार रात गुजारेंगे।
बनारस बैंक चौक स्थित महिला शिल्प कला भवन के पास इमामगंज मुहल्ले में हटाये गये अतिक्रमण के शिकार कैशल पटेल गुमशुम खड़े थे। बस उनकी नजर टूटे हुए घर की ओर थी। वे तीस वर्षों से अशियाना में पूरे परिवार के साथ जीवन यापन कर रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि क्या आप ने घर में से सामान हटाये थे।
सर जरा सा भी मौका नहीं मिला। हम सोच भी नहीं सके थे कि अचानक सब कुछ लुट जायेगा। कई बार नोटिस आया, लेकिन कुछ नहीं होता था। इसी चक्कर में सारा कुछ चला गया। घर सड़क के किनारे रहने से पहले बुलडोजर के शिकार हुये। घर में रखे चौकी, पलंग, कुर्सी आदि सबके सब बर्वाद हो गये।
घर में कुछ भी नहीं बचा। घर में लगे लोहे के सामान, टीन जो बचे थे उसे चुनकर एक जगह कर रहे थे। मुन्ना चौधरी भी घर के टूटे हुए घर में जो सामान बचे थे एकत्रित कर रहे थे। आलोक झा, सुशील झा घर टूटने से उनकी आंखे आसू से लबालब भरा था। टूटे हुए घर में बचे हुए सामान को ढुढ़ रहे थे।
ऐही हाल गरीबनाथ एवं मिथलेश महतो का भी था। लोगों का कहना था कि प्रशासन अगर घर तोड़ने के बदले एक घंटा का मौका देते तो कई सामान को हटाने का समय मिल जाता। वहीं सामान बर्वाद होने से बच जाता।
हालांकि ग्यारह बजे सुबह से लेकर दोपहर तीन बजे अतिक्रमण हटाने का काम किया गया। जिसमें लगभग चालीस घरों को तोड़ने का काम किया गया। बाकी घर वालों को एक सप्ताह के अंदर भूमि खाली करने का समय दिया गया।
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