गोरौल(वैशाली)।गोरौल प्रखंड सहित सीमावर्ती क्षेत्र से सटे गांवों में लगा केले की फसल बाढ़ और बारिश के पानी से जलजमाव हो जाने के कारण पूर्णत: नष्ट हो गयी है। इससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं।
गोरौल चौक- कटहारा मार्ग के चकिया गांव से आगे व्यासचक गांव के निकट एवं लालगंज- मुजफ्फरपुर मुख्य मार्ग के मौना, सिहमा, कटारू, चिन्तामनीपुर, चकगुलामुद्दीन सहित कई गांवों में लगभग पांच सौ एकड़ में केले की खेती की जाती है। पूरे जिले में केले की खेती हाजीपुर के बाद यहां ही होती थी। यहां के किसान केले के खेती पर ही निर्भर रहते है।
बेटियों की शादी भी केले की फसल देखकर ही तय की जाती थी। यहां तक कि किसानों के आमदनी का मुख्य जरिया केला ही माना जाता है। केले की आय से ही यहां के किसान अपने बच्चे को पढ़ाकर बड़ा अधिकारी तक बनाया है। आज इस गांव में केले की फसल वाया नदी में आये पानी में पूरी तरह डूब गयी है।
हालांकि किसानों के घर भी पानी में डूबे हुए हैं। चार से पांच फीट उंचाई तक पानी फैला हुआ है। इससे भी ज्यादा चिंता किसानों को अपने पानी में डूबे हुए केले के पौधों को देखकर हो रही है। बाढ़ के पानी मे कंठ तक डूबने के कारण केले की फसल पीली पड़ चुकी है।
अब उनकी नगदी आमदनी का स्रोत बंद हो गया है। खेतो में मुरझाये, पानी मे गिरे डूबे हुय केले के पौधे को देख किसान हताश हो गए हैं। केला के लिये प्रसिद्ध यह इलाका अब प्रकृति आपदा के बलिवेदी पर भेट चढ़ रहा है। दो वर्ष पूर्व भीषण गर्मी के कारण केले के पौधे झुलस कर नष्ट हो गए थे। वही इस बार अत्यधिक पानी के कारण बर्वाद हो गये है। मौना बिशनपुर, मौना महिमा, कटारू और सिंहमा कण्ठ गावों के किसान केला की खेती से सालाना लाखो की आमदनी करते रहे है। उक्त पांचों गावों में करीब पांच सौ एकड़ में केले की खेती होती है।
एक समय था जब मौना बिशनपुर गांव के किसी भी व्यक्ति के घर जाना होता तो केले के बगीचा होकर ही जाना पड़ता। सड़क से केला का बगीचा होने के कारण किसी का घर नही दिखता था। आज केले के पौधे नहीं दिख रहे हैं। केवल पानी ही पानी दिख रहा है और उसमें इधर से उधर लोगो को ले जाती नाव ही दिखाई दे रहा है।
गांव के किसान रतिकांत चौधरी,संजय कुमर चौधरी, शशिकांत चौधरी, नन्दकिशोर चौधरी बताते है की इस गांव में केला की खेती काफी होती है। प्रति एकड़ केले की खेती से 70 से 80 हजार की नगदी आमदनी होती थी।
यहां का केला पटना,आरा,गया,जहानाबाद, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेतिया, छपरा, दरभंगा, मधुबनी के अलावे झारखंड तक जाता था। यह इलाका बाया नदी के किनारे बसा है ।तीन वर्ष पहले इस नदी में जरूरत के लायक पानी नही आती थी।वही इस बार पानी की वजह से किसानों के मंसूबों पर पानी फेर दिया ।घरों से लेकर केले के बगानों में चार से पांच फीट तक पानी आ गया है।
कई वर्षों से नमी नही रहने के कारण पौधा झुलस रहे थे। वही दो वर्षों से ज्यादा पानी के कारण पौधे सूख रहे हैं। केले की पैदावार कम होने से गांव के लोगो की माली हालत खराब हो गयी है। सीमावर्ती सिंहमा कण्ठ गांव के 50 एकड़ में केले की खेती होती है। गांव के रामा मिश्र,कामेश्वर मिश्र कहते है कि यहां लगभग आधा दर्जन केले की किस्मो की खेती होती थी, लेकिन अब केला के बगानों में काफी पानी लग गया है।जिससे केले के पेड़ लगातार सूखकर गिर रहे हैं।
कटारू और चिन्ताम्नपुर गावो में लगभग सौ एकड़ में केले की खेती होती है। गांव के पप्पू सिंह, तेजनारायण सिंह बताते है की केले के बगानों में बाढ़ और वारिश का पानी लगभग महीनों से लगा हुआ है जिसके कारण केले की फसल सूखकर पानी में ही गिर रही है। इन बगानों में कई महीनों तक पानी लगा रहेगा यह कहा नही जा सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस क्षेत्र के किसानों को अब नगदी आमदनी मुश्किल हो गयी है।
पंचायत के मुखिया अजय पासवान ने बताया की वाया नदी के पानी एवं वारिस का पानी केले के बगानों में फैल गया है।जिससे फसल पूर्णत: बर्वाद हो गया है।किसानों को नगदी आमदनी का स्रोत बंद हो गया है। सरकार के तरफ से कोई सहायता किसानों को अभी तक नही दी गयी है।किसानों के घरों में भी पानी घुसा हुआ है। चारो तरफ हाहाकार मच गया है। नाव भी समुचित मात्रा में उपलब्ध नही है। लोगो को खाने पीने की भी काफी दिक्कत है। हमलोगों से जो बन रहा है लोगों की सेवा कर रहे हैं।
अंचलाधिकारी ब्रजेश कुमार पाटिल ने बताया कि वस्तुस्थिति से सरकार को अवगत कराया गया है। एक फसल क्षति को लेकर एक रिपोर्ट भी भेजा गया है। सरकार का जो गाइडलाइन प्राप्त होगा उसके अनुकूल लोगो की सहायता किया जायेगा।
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