पटना: लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार यानी लोकसभा चुनाव के लिए हलचल तेज हो गई है। चुनावी शोरगुल शुरू हो चुका है और आने वाले कुछ ही सप्ताह में जनता को एक बार फिर से अपना सांसद चुनने का मौका मिलने वाला है। इस बार का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि एनडीए हो या विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ दोनों ही खेमों में बड़े बदलाव हो चुके हैं। बिहार इससे अछूता नहीं रहा है. यहां भी पिछले चुनाव में जो लोग बीजेपी को हराने के लिए मैदान में उतरे थे वहीं अब वे नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना जोर लगा रहे हैं. इन नेताओं में उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी शामिल हैं. पिछले चुनाव में दोनों लालू यादव की लालटेन की रोशनी में चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन फिर राजनीतिक अंधेरा का सामना करना पड़ा था।
2019 में कुशवाहा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी तो वहीं जीतन राम मांझी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा को 5 सीटें मिली थीं तो हम को 3 सीटें मिली थीं. अपने हिस्से की दो सीटों पर खुद कुशवाहा उतरे थे तो जीतन राम मांझी गया सीट से चुनाव लड़े थे. राजद-कांग्रेस के समर्थन के बावजूद कुशवाहा और मांझी ना सिर्फ अपनी सीटें हारे थे, बल्कि उनकी पार्टी को भी जनता ने खाली हाथ लौटा दिया था।
कुशवाहा पिछले चुनाव में काराकाट और उजियारपुर से लड़े थे. काराकाट में उन्हें जेडीयू के महाबली सिंह से तो वहीं उजियारपुर में बीजेपी के नित्यानंद राय से करारी हार का सामना करना पड़ा था. उजियारपुर में उन्हें 2,77,278 वोटों से तो वहीं काराकाट में 84,542 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. इसी तरह से जेडीयू के विजय कुमार ने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी को हराया था. विजय कुमार को 467007 यानी 48.79 प्रतिशत वोट मिले थे तो जीतनराम मांझी को 314581 यानी 32.86 प्रतिशत. 1,52,426 वोटों से यहां हार जीत का फैसला हुआ था. इसके इतर दोनों जब भी एनडीए के साथ रहे तो फायदे में रहे थे।
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