रोहतास: बिहार के रोहतास जिले में पहाड़ी पर बसा तुतली भवानी धाम पर्यटकों को लुभा रहा है। जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर पूरब की दिशा में स्थित तुतला भवानी धाम ऐतिहासिक, धार्मिक दर्शनीय स्थान के साथ अब पर्यटन स्थल के रूप में भी विख्यात हो गया है। पहाड़ी में स्थित अपने मनोरम दृश्यों को लेकर यहां सालों भर पर्यटकों का मेला लगता है। शारदीय व वासंती नवरात्र के मौके पर पूरे नौ दिन मेला लगता है। दूर-दूर से श्रद्धालू माता रानी के पूजा अर्चना करने यहां पहुंचते हैं।
पिछले 15 वर्षों से यह पर्यटन स्थल का हब बना हुआ है। अपनी गोद में मनोरम दृश्यों के साथ झरना से गिरने वाले पानी को देखना काफी सुंदर लगता है। यहां आने के बाद लोगों को यहां से जाने का दिल नहीं करता है। यही वजह है कि पर्यटन की संभावना को देखते हुए वन विभाग की ओर से यहां काफी बदलाव किया जा रहा है। वन विभाग इसे ईको टूरिज्म बनाने के लिए कार्य कर रहा है। वहीं धाम पर जाने के लिए ईको रिक्शा चलाया जा रहा है, ताकि प्रदूषण की मात्रा काफी कम हो सके। लोगों की भीड़ को देखते हुए आसपास के क्षेत्रों में कई रेस्टोरेंट के साथ होटल का भी निर्माण हो गया है।
बिहार के रोहतास जिले के तिलौथू प्रखंड स्थित मां तुतलेश्वरी भवानी की प्रतिमा अति प्राचीन है। राजा प्रतापधवल देव की ओर लिखवाए गए दो शिलालेख यहां आज भी हैं। पहले शिलालेख में 19 अप्रैल 1158 (1254 संवत शनिवासरे) को महिषासुर मर्दिनी अष्टभुजी मां दुर्गा की नयी प्रतिमा स्थापित करने का वर्णन है। दूसरे शिलालेख में राजा की पत्नी सुल्ही, भाई त्रिभुवन धवल देव, पुत्र बिक्रम धवल देव, साहसधवल देव तथा पांच पुत्रियों के साथ पूजा अर्चना करने का जिक्र है।
शुद्ध मन से मांगी गई मनोकामनाएं होती है पूर्ण: मंदिर के बारे में यहां ऐसी मान्यता है कि जो यहां जो भी अशुद्ध मन से आता है, उसे भ्रामरी देवी का प्रकोप झेलना पड़ता है। वहीं शुद्ध मन से मांगी गई मनोकामनाएं पूरी होती है। इतिहासकारों के मुताबिक यहां दो प्रतिमाएं विराजमान हैं। एक प्रतिमा खंडित है, जबकि दूसरी नई है। बताया जाता है कि 12 वीं सदी में खरवार के राजा धवल प्रताप देव ने मूर्ति स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा करवाया था।
तुतला भवानी धाम को वन विभाग ने अपने ज़िम्मे में ले लिया है। यहां ईको पर्यटन की संभावना को देखते हुए इसे विकसित किया जा रहा है। मंदिर तक जाने के लिए सड़क के साथ झूला पुल का भी निर्माण कराया गया है। कुंड में नहाने के दौरान लोगों की सुरक्षा के साथ कुंड में डूबने से बचाने के लिए चारों तरफ से बैरिकेडिंग किया गया है।
धाम मे सालों भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन बरसात के दिनों में वाटरफॉल को देखने के लिए पर्यटक का जमावड़ा लगा रहता है। यहां की खुबसूरती के चर्चे पूरे जिले में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में मशहूर है। पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन था। लेकिन, अब पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सड़क बनाई गई है। सड़क से कार, जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर के करीब एक किमी पहले कार एवं बाइक की पार्किंग की जाती है। उसके बाद श्रद्धालु वहां से पैदल जाते हैं। हालांकि, बुजुर्ग, बच्चे व महिलाओं को धाम तक जाने में परेशानी न हो इसको ध्यान में रखते हुए ई रिक्शा चलाया जाता है। धाम परिसर में जाने के लिए झूले का निर्माण कराया गया है, जो पर्यटकों के साथ श्रद्धालुओं का दिल मोह लेता है।
झूला बना आकर्षण का केंद्र : वाटर फॉल व धाम में जाने से पहले रस्सी का झूला बनाया गया है, जो पर्यटकों के साथ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। झूला से वाटरफॉल का दृश्य देखने लायक बनता है। झूले को हरे रंग से रंगा गया है, ताकि सब कुछ प्राकृतिक दिखे। झूले की हरियाली के साथ प्राकृति की हरियाली देखना आंखों को सुकून देता है। बच्चों के साथ बड़े-बुजुर्ग भी झूले का आनंद लेते दिखाई देते हैं।
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