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जातिगत जनगणना की जरूरत क्यों है? पटना हाईकोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बता तेजस्वी यादव ने दिया जवाब

पटना: पटना हाईकोर्ट द्वारा बिहार में जातिगत जनगणना कराने के नीतीश सरकार के फैसले को सही ठहराने पर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने जातीय गणना का विरोध करने वालों पर हमला बोला है। साथ ही इसके खिलाफ उठ रहे सवालों के भी उन्होंने जवाब दिए हैं। तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा कि बिहार के हर गरीब, वंचित और अच्छे भविष्य की चाहत रखने वाले व्यक्ति के लिए यह अत्यंत खुशी का विषय है कि पटना उच्च न्यायालय ने जाति आधारित सर्वेक्षण पर आगे बढ़ने के लिए बिहार सरकार को हरी झंडी दिखा दी है। इसे लेकर आम नागरिकों के चेहरों पर प्रसन्नता और संतोष स्पष्ट देखा जा सकता है।

जाति जनगणना: क्यों ज़रूरी है?... समझें पूरा गणित | न्यूज़क्लिक

तेजस्वी यादव ने बुधवार को कहा कि जब से जातिगत जनगणना करवाने के लिए आवाज उठाई जा रही थी, इस ओर प्रयास हो रहे थे, तभी से कुछ राजनीतिक दल एवं जातिवादी लोग इसके विरुद्ध दुष्प्रचार में लग गए थे। उन्होंने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि यह केवल कमजोर वर्गों के ही हित में है। जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट यह है कि यह सभी वर्गों के सभी लोगों के हित में समान रूप से है।

तेजस्वी ने कहा कि समाज एक शरीर की भांति होता है। एक अंग के पीड़ा में होने या कमज़ोर होने पर उसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है। एक अंग के कमजोर होने पर सभी अंग धीरे धीरे कमजोर होने लगते हैं। उसी प्रकार समाज या देश के कुछ वर्गों के पीछे रह जाने से आगे निकल चुके वर्ग भी अपने पूरे सामर्थ्य और प्रतिभा के अनुसार आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इसका देश के विकास और सामाजिक सौहार्द पर इसका प्रतिकूल दुष्प्रभाव पड़ता है।

Bihar News : Will caste based census harm the country:क्या जाति आधारित  जनगणना से देश को होगा नुकसान ?

जातिगत जनगणना से बंटेगा समाज? तेजस्वी ने दिया जवाब
उन्होंने कहा कि कई लोगों ने जाति आधारित जनगणना के विरोध में यह भी कहा कि जाति के आंकड़े जुटाने की क्या आवश्यकता है? इससे तो समाज का विभाजन होगा। दरअसल भारत में प्रारंभ से ही जाति और वर्ण के आधार पर व्यवसायों और समाज में लोगों के महत्व का विभाजन और वर्गीकरण हुआ। इस प्रकार व्यक्ति विशेष की आर्थिक स्थिति पर उसकी जाति का प्रभाव पड़ा। इतना ही नहीं, कुछ व्यवसायों को श्रेष्ठ तो कुछ को तुच्छ भी बताया गया। इन कारणों से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक ही व्यवसाय में सीमित रहे। इससे लोगों का जीविकोपार्जन और आर्थिक स्थिति इस बात पर निर्भर करने लगा कि अपना जन्म किस वर्ण में हुआ, ना कि उनकी इच्छा या कौशल पर। इसी कारण पूरी जाति विशेष के लोगों की आर्थिक स्थिति भी कमोबेश एक सी ही रही। ऐसे में कुछ वर्ग एक साथ धीरे धीरे पिछड़ते चले गए। अगर जाति के कारण कुछ लोगों में आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन व असमानता आया है, तो इस समस्या के कारणों का जुटान, उस पर अनुसंधान और इसका निदान भी जाति के वैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर ही किया जा सकता है।

तेजस्वी यादव ने आगे कहा कि हर देश, सरकार, संगठन या संस्थाएं हर प्रकार के आंकड़े जुटाती हैं और उन आंकड़ों को आधार बनाकर आगे की प्रभावी योजनाएं बनाती हैं, निर्णय लेती हैं। सटीक आंकड़ों की मदद से समय, पैसों, संसाधनों और प्रयासों की बर्बादी से बचा जा सकता है। सही जानकारी होने से आवंटन, समय सीमा, जुटाने और काम पर लगाने के लिए ज़रूरी संसाधन व आवश्यक संख्या में मानव-बल का भी सही-सही अंदाजा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अगर बात कुछ जाति विशेष या वर्ग विशेष के लोगों के प्रशिक्षण, शिक्षा, कल्याण, उत्थान और रोजगार की हो तो सरकार अथवा प्रशासन के पास अब जातिगत जनगणना के कारण सही सही और पूरी जानकारी पहले से उपलब्ध होगी। ऐसे उपलब्ध आंकड़ों का लाभ सभी वर्गों को मिलेगा क्योंकि इन आंकड़ों से विकास की गति को पंख लगेंगे। और यह सभी जानते हैं कि जब भी कहीं तीव्रगति से विकास होता है तो उस विकास का लाभ सभी को समान रूप से मिलता है। यही कारण है कि बिहार के लिए 1 अगस्त का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक था जब पटना उच्च न्यायालय ने जातिगत जनगणना के रास्ते में डाले जा रहे अड़चनों को हटाकर समग्र विकास के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।

 

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